रंगीन,श्वेत-स्याह
तस्वीरों में
जीवन की
उपलब्लियों की
छोटी-बड़ी
अनगिनत गाथाओं में
उत्साह से लबरेज़
आत्मविश्वास के साथ
मुस्कुराती
बेपरवाह स्त्रियाँ,
समाज की आँखों में
स्वयं के लिए
समानता और सम्मान
का प्रतिबिंब
देखने की जिद में,
पगहा तोड़कर,
रचती है नयी कहानियाँ,
अपने अस्तित्व का खूँटा
गाड़ आती है
आसमान की
छाती पर।
पर फिर भी,
अपने हृदय के एकांत में
सर्वाधिकार सौंपकर
होना चाहती है
निश्चिंत
मन के सबसे महीन
भावों के
रेशमी लच्छियों का
एक सिरा थामे
उलझती जाती है...,
मुँह जोहती हैं,
आजीवन स्वेच्छा से
समझौता करती हैं,
अपने प्रिय पुरुष के
सानिध्य में अपने लिए
प्रेम का शाश्वत स्पंदन
महसूस करने की
लालसा में।
#श्वेता
८/०३/२०२०
८/०३/२०२०
मुँह जोहती हैं,
ReplyDeleteआजीवन स्वेच्छा से
समझौता करती हैं,
अपने प्रिय पुरुष के
सानिध्य में अपने लिए
प्रेम का शाश्वत स्पंदन
महसूस करने की
लालसा में।
बिलकुल सही श्वेता. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति 👌 👌
आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
उत्तम,
ReplyDeleteक्या वास्तव में पगहा तोड़ चुकी है आज की सारी स्त्रियां या अपने आस पास का माहौल ऐसी स्त्रियों से भर गया है जो पगहा तोड़ चुकी है और समाज की बाकी स्त्रियों पर हमारी नज़र नहीं पड़ती है? ये जानना अहम है।
मुझे लगता है कि जब एक स्त्री आज़ाद होती है तो उसे ज़मीनी काम करके अन्य स्त्रियों को अभी आज़ाद करवाना चाहिए। जबकि वो ऐसा नहीं करती वो आसमान की अकेली चिड़िया होना चाहती है।
ऐसा करने से वो कैदी चिड़ियों की चहेती नहीं बन सकती।
अब मेरी बात का ये मतलब मत निकाल लेना कि मैं कह रहा हूँ स्त्रियां गुलाम हैं (जबकि है)
अब समय है कि एक स्वतन्त्र स्त्री को दूसरी की गुलामी से बैचैनी होनी चाहिए।
आपने बहुत खूब लिखा है।
मगर प्रेम कभी बलिदान नहीं मांगता।
प्रेम और बंधन दो अलग बाते हैं।
बहुत सुंदर विवेचना प्रिय रोहित। किसी और के कहने के लिए कुछ नहीं बचा। 👌👌🙏🙏
Deleteरचना पर आपके बहुमूल्य विचार अच्छे लगे।
Deleteरेणु दी की सराहना से सहमत हूँ:)
बहुत आभारी हूँ रोहित जी।
सादर।
very beautiful composition.
ReplyDeleteThanks so much Chandra.
Deletevery beautiful composition.
ReplyDeleteThanks so much Chandra.
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ सर।
Deleteसादर।
सुंदर अभिव्यक्ति स्वेता! सभी स्त्रियों को अपना पगहा तोड़़ लेना चाहिए।
ReplyDeleteआभारी हूँ दीदी।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteदोनो ही आधार स्तंभ
जी सही कहा आपने।
Deleteआभारी हूँ अनीता जी।
सादर।
बहुत खूब। सार्थक रचना।
ReplyDelete--
रंगों के महापर्व
होली की बधाई हो।
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ देर से उत्तर देने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
Deleteसादर।
वाह श्वेता ,बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ शुभा दी।
Deleteहमेशा की तरह सुंदर रचना प्रिय श्वेता। नारी मन की लालसाओं की सीमा की थाह पाने की कोशिश करती हुई। होली की हार्दिक शुभकामनायें तुम्हारे लिए।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
सत्य ही है,आज स्त्रियाँ स्वयं ही समझौता करने को तैयार हो जाती है। जब स्वयं ही पीछे हट जायेंगी तो कोई क्यों इनके लिए अपनी आवाज़ उठाए। अपने पगाहो तो तोड़ने का संघर्ष स्त्रियों को स्वयं ही करना होगा।
ReplyDeleteसत्य कहा आपने आँचल।
Deleteआभारी हूँ प्रिय आँचल।
सादर।
आपकी पंक्तियाँ पढ़कर सदा ही अंतर के किसी मौन में किसी शून्य में जाकर बैठती हूँ और निःशब्द सी बस यही सोचती हूँ कि क्या इससे भी परे कुछ है जहाँ से आपकी कलम इन पंक्तियों को लाती है एयर पाठकों के अंतर में अपना स्थान बनाती है। सदा की भाँति बेहद उम्दा सृजन आदरणीय दीदी जी। सादर प्रणाम 🙏 होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ प्रिय आँचल।
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete12 मार्च २०२० को साप्ताहिक अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
बहुत आभारी हूँ ध्रुव जी।
Deleteसादर।
समझौता करती हैं,
ReplyDeleteअपने प्रिय पुरुष के
सानिध्य में अपने लिए
प्रेम का शाश्वत स्पंदन
महसूस करने की
लालसा में।
वाह!!!
पगहा तोड़कर आसमान में उड़ती है अपनी कल्पनाओं में कहानियों में....
जितनी आजाद ख्यालों से सजी कहानी उतनी ही गुलाम स्त्री....
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर विचारोत्तेजक लाजवाब सृजन।
बहुत आभारी हूँ सुधा जी।
Deleteसादर।
स्त्रियों के मन को सहज ही लिख दिया आपने ..।
ReplyDeleteसमर्पण, प्रेम और कारण की भावना लिए मन के कोमल भाव ही प्रबल रहते है स्त्री में और उन भावों का सरलता से चित्रण करती है रचना ...
बहुत आभारी हूँ सर।
Deleteसादर।
आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाओं के अंतर्गत नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' २५ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/03/blog-post_25.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'