Tuesday 17 March 2020

महामारी से महायुद्ध


काल के धारदार
नाखून में अटके
मानवता के मृत,
सड़े हुये,
अवशेष से उत्पन्न
परजीवी विषाणु,
सबसे कमजोर शिकार की
टोह में दम साधकर 
प्रतीक्षा करते हैं
भविष्य के अंंधेरों में
छुपकर।

मनुष्यों के स्वार्थी
तीरों से विदीर्ण हुई
कराहती 
प्रकृति के अभिशाप से
जर्जर हुये कंगूरों पर
रेंगती लताओं से
चिपटकर चुपचाप 
परजीवी चूसते हैं
बूँद-बूँद
जीवनी शिराओं का रस
कृश तन,भयभीत मन को
शक्तिशाली होने का भ्रम दिखा 
संक्रमित कर सभ्यताओं को
गुलाम बनाकर 
राज करना चाहते हैं
संपूर्ण पृथ्वी पर।

धैर्य एवं सकारात्मकता के
कालजयी अस्त्रों
से सुशोभित 
सजग,निडर योद्धा
काल के परिस्थितिजन्य 
विषधर परजीवियों 
के साथ हुये
महाविनाशकारी
महायुद्ध में
मृत्यु के तुमुलनाद से
उद्वेलित,
काल-कलवित होते
मानवों की संख्यात्मक वृद्धि से
विचलित,
किंतु दृढ़प्रतिज्ञ,
संक्रमित नुकीले
महामारी के
विषदंतों को 
समूल नष्ट करने के लिए
अनुसंधानरत,
अतिशीघ्र
मिटाकर अस्तित्व
विषैले परजीवियों का,
विजय रण-भेरी फूँककर
आशान्वित
संपूर्ण विश्व को
चिंतामुक्त कर
आह्लादित करने को
कटिबद्ध हैं।

#श्वेता सिन्हा
१७/०३/२०२० 


15 comments:

  1. सार्थक लेखन... आस फलित हो

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ दी। सादर।

      Delete
  2. अन्य कई रचनाकारों से इतर .. "कोरोना" शब्द को बिना व्यवहार में लाए ..पर कुछ-कुछ क्लिष्ट** साहित्यिक शब्दों के साथ ..कोरोना के अतुल्य शब्द-चित्र और बिम्बों से सुसज्जित रचना ...
    ( ** - हो सकता है मुझ जैसे अल्पज्ञानी के लिए कुछ शब्द क्लिष्ट हो ).

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आभारी हूँ।
      सादर।

      Delete
  3. इस हाड़मांस के पुतले में मानवता होती तो ये रोज नए नए जीवों के गोस्त में स्वाद नहीं ढूंढता।
    कमज़ोर काया तो किसी भी विषाणु से नाश हो सकती है।
    लेकिन दुनियां भर के वैद्य और डॉक्टर इस पर पार पा सकते हैं। अभी वो अपनी कोशिश में हैं।
    सार्थक,सुंदर,सबक भरी रचना।
    बहुत खूब।
    नई रचना सर्वोपरि?

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ रोहित जी।
      सादर।

      Delete
  4. वाह!श्वेता ,बहुत खूब!आशा तो यही करते हैं कि शीध्र ही इस 'कोरोना'नामक दैत्य से संपूर्ण विश्व को मुक्ति मिले ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूँ शुभा दी।
      सादर।

      Delete
  5. आभारी हूँ दी।
    सादर।

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब , ओजपूर्ण सृजन ,सादर नमन श्वेता जी

    ReplyDelete
  7. अति सुंदर !
    :
    सावधानी में ही बचाव है

    ReplyDelete
  8. प्रिय श्वेता,महामारी के तांडव की दस्तक और डरा सहमा समस्त विश्व। सबसे बुरी बात इसका पंजा उनके गिरेबाँ तक जा पहुंचा जो प्रकृति के सबसे करीब हैं । परजीवियों पर आधारित आहार इसका मुख्य कारण बना जो एक तरह से उन अबोले प्राणियों का शाप है, जो अकारण मानव के भोजन के लिए तड़प तड़प कर अपनी जान गंवाते रहे है।सार्थक रचना जो समस्त घटनाचक्र पर विहंगमता से दृष्टिपात करती है। हार्दिक शुभकामनायें इस समसामयिक रचना के लिए।शायद हमारे शाश्वत मूल्य इस बीमारी से निजात पाने में सहायक सिद्ध हों। सस्नेह 👌👌👌👌

    ReplyDelete
  9. समय की नब्ज टटोलती भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति
    बहुत सुंदर सृजन
    आपने तो हमारे ब्लॉग में आना ही छोड़ दिया
    सादर

    पढ़ें- कोरोना

    ReplyDelete
    Replies
    1. कोरोना का लॉक डाउन चल रहा होगा!😀

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...