काल के धारदार
नाखून में अटके
मानवता के मृत,
सड़े हुये,
अवशेष से उत्पन्न
परजीवी विषाणु,
सबसे कमजोर शिकार की
टोह में दम साधकर
प्रतीक्षा करते हैं
भविष्य के अंंधेरों में
छुपकर।
मनुष्यों के स्वार्थी
तीरों से विदीर्ण हुई
कराहती
प्रकृति के अभिशाप से
जर्जर हुये कंगूरों पर
रेंगती लताओं से
चिपटकर चुपचाप
परजीवी चूसते हैं
बूँद-बूँद
जीवनी शिराओं का रस
कृश तन,भयभीत मन को
शक्तिशाली होने का भ्रम दिखा
संक्रमित कर सभ्यताओं को
गुलाम बनाकर
राज करना चाहते हैं
संपूर्ण पृथ्वी पर।
धैर्य एवं सकारात्मकता के
कालजयी अस्त्रों
से सुशोभित
सजग,निडर योद्धा
काल के परिस्थितिजन्य
विषधर परजीवियों
के साथ हुये
महाविनाशकारी
महायुद्ध में
मृत्यु के तुमुलनाद से
उद्वेलित,
काल-कलवित होते
मानवों की संख्यात्मक वृद्धि से
विचलित,
किंतु दृढ़प्रतिज्ञ,
संक्रमित नुकीले
महामारी के
विषदंतों को
समूल नष्ट करने के लिए
अनुसंधानरत,
अतिशीघ्र
मिटाकर अस्तित्व
विषैले परजीवियों का,
विजय रण-भेरी फूँककर
आशान्वित
संपूर्ण विश्व को
चिंतामुक्त कर
आह्लादित करने को
कटिबद्ध हैं।
#श्वेता सिन्हा
१७/०३/२०२०
१७/०३/२०२०