क्या सचमुच एकदिन
मर जायेगी इंसानियत?
क्या मानवता स्व के रुप में
अपनी जाति,अपने धर्म
अपने समाज के लोगों
की पहचान बनकर
इतरायेगी?
क्या सर्वस्व पा लेने की मरीचिका में
भटककर मानवीय मूल्य
सदैव के लिए ऐतिहासिक
धरोहरों की तरह
संग्रहालयों में दर्शनीय होंगे
अच्छाई और सच्चाई
पौराणिक दंतकथाओं की तरह
सुनाये जायेंगे
क्या परोपकार भी स्वार्थ का ही
अंश कहलायेगा?
क्या संदेह के विषैले बीज
प्रेम की खेतों को
सदा के लिए बंजर कर देगा?
क्या भावनाओं के प्रतिपल
हो रहे अवमूल्यन से
विलुप्त हो जायेंगी
भावुक मानवीय प्रजाति?
क्या हमारी आने वाली पीढ़ियाँ
रोबोट सरीखे,
हृदयहीन,असंवेदनशील
इंसानों की बस्ती के
यंत्रचालित पुतले होकर
रह जायेगी?
हाँ मानती हूँ
असंतुलन सृष्टि का
शाश्वत सत्य है,
सुख-दुख,रात-दिन,
जीवन-मृत्यु की तरह ही
कुछ भी संतुलित नहीं
परंतु विषमता की मात्राओं को
मैं समझना चाहती हूँ,
क्यों नकारात्मक वृत्तियाँ
सकारात्मकता पर
हावी रहती हैं?
क्यूँ सद्गुणों का तराजू
चंद मजबूरियों के सिक्कों के
भार से झुक जाता है?
सोचती हूँ,
बदलाव तो प्रकृति का
शाश्वत नियम है,
अगर वृत्तियों और प्रवृत्तियों
की मात्राओं के माप में
अच्छाई का प्रतिशत
बुराई से ज्यादा हो जाये
तो इस बदले असंतुलन से
सृष्टि का क्या बिगड़ जायेगा?
#श्वेता सिन्हा
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ReplyDeleteकभी नहीं मरेगी इंसानियत...
ReplyDeleteइंसानों की पैदावार जबतक प्रकृति करती रहेगी..
very nicely written. very well.
ReplyDeleteइंसान होंगें तब तो इंसानियत की उम्मीद की जायेगी मोहतरमा !!!
ReplyDeleteयहाँ इंसान हैं कहाँ !? ... कोई हिन्दू है, कोई मुसलमान है, कोई बिहारी है, कोई बंगाली है, कोई हिन्दू में कायस्थ है, कोई ब्राह्मण है , कोई कायस्थ में श्रीवास्तव है, कोई अम्बष्ट है, कोई वकील है, कोई आला अधिकारी है, कोई मजदूर है, आदि-आदि, इत्यादि-इत्यादि ... पहले इंसान खोजना होगा ... फिर उसमे जांच कर के (कोरोना जैसा ) इंसानियत की खोज करनी होगी और ... तब उसके बचने की बात सोचनी होगी ..
(एक कुतर्की - अग्रिम क्षमा के साथ)...
वाह!श्वेता ,बहुत खूब । यह असंतुलन तो बहुत अच्छा होगा ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 03 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन, श्वेता जी जब तक सृष्टि कायम हैं इंसानियत जिन्दा हैं जिस दिन इंसानियत धरा से मिट गई धरा भी नष्ट हो जाएगी ,आज के हालात में भी तो जितने ज्यादा शैतान नजर आ रहे हैं उससे कही ज्यादा भगवान हमारी रक्षा के लिए प्रयासरत हैं। सादर नमन आपको
ReplyDeleteक्यों नकारात्मक वृत्तियाँ
ReplyDeleteसकारात्मकता पर
हावी रहती हैं?
क्यूँ सद्गुणों का तराजू
चंद मजबूरियों के सिक्कों के
भार से झुक जाता है?
हाँ झुक तो जाता है पर सकारात्मकता भी इतनी कमजोर नहीं कि नकारात्मकता को जीतने दे...बस कुछ खेल सा खेलती हैजैसे ही अति बढ़ती है वैसे ही करवट ले लेती है और पल में पासा पलट जाता है हमेशा से यही तो हुआ है सृष्टि के रचयता अपनेआप संतुलन बनाते हैं
बहुत ही सुन्दर विचारोत्तेजक लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअगर वृत्तियों और प्रवृत्तियों
ReplyDeleteकी मात्राओं के माप में
अच्छाई का प्रतिशत
बुराई से ज्यादा हो जाये
तो इस बदले असंतुलन से
सृष्टि का क्या बिगड़ जायेगा?
शायद यही प्रश्न अनुत्तरित है
रावण पैदा हुआ तो रावण को ही मरणा पड़ा
ReplyDeleteकंस जन्मा तो कंस को ही मरना पड़ा
जो गलत करता है उसको बेवक्त बेमौत मरना पड़ता है।
रहा आज के दौर की बात तो आज कोई भी दूध का धुला कहाँ हैं।
सृष्टि कभी भी कोई बीज का नुकसान नहीं करती बस सभ्यता का विनाश हुआ है।
गहरे प्रश्न के साथ गहरे में उतरती सोच को सलाम।
बहुत खूबसूरत रचना।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जून 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अर्थशास्त्र में पढ़ा था कि प्रकृति अपना संतुलन स्वयं कर लेती है । लेकिन प्रकृति को रहने दिया जाय तब न ।खैर कोशिश निरंतर करती है इसीलिए इतनी भयानक आपदाएँ भी आती हैं ।
ReplyDeleteये असंतुलन अब बढ़ना ही है .... अच्छाई कम होगी और बुराई बढ़ेगी तब ही कलयुग खत्म होने की कगार पर पहुँचेगा ।