हृदय में बहती
स्वच्छ धमनियों में
किर्चियाँ नफ़रत की
घुलती हैं जब,
विषैली,महीन,
नसों की
नरम दीवारों से
रगड़ाकर
घायल कर देती हैं
संवेदना की मुलायम
परतों को,
फट जाती हैं
लहूलुहान
रक्तवाहिनियाँ
वमन करते हैं
विचारों का दूषित गरल
खखारकर थूकते हैं लोग
सेवारत मानवता के
सफेद कोट,
ख़ाकी वर्दियों पर...
देवदूतों के फेफड़ों में
भरना चाहते हैं
संक्रमित कीटाणु,
नीचता संगठित होकर
अपने धर्मग्रंथों के
पन्नों को फाड़कर
कूड़ेदानों,पीकदानों
में विसर्जित कर
मिटा देना चाहती हैं
जलाकर भस्म
कर देना चाहती है
धर्म की सही परिभाषा।
अपनी मातृभूमि के
संकटकाल में
अपने सम्प्रदाय की
श्रेष्ठता सिद्ध करने में
इतिहास में
क्रूरता के अध्याय जोड़ते
रीढ़विहीन मनुष्यों की
प्रजातियों के
लज्जाजनक कर्म,
कालक्रम में
नस्लों द्वारा जब
खोदे जायेंंगे
थूके गये
रक्तरंजित धब्बों की
सूखी पपड़ीदार
निशानियों को
चौराहों पर
प्रश्नों के ढेर पर
बैठाकर
अमानुषिक,अमानवीय
कृतित्वों को
उन्हीं के वंशजों द्वारा
एक दिन अवश्य
धिक्कारा जायेगा!
किसी देश के
सच्चे नागरिक की
धर्म की परिभाषा
मनुष्यता का कर्तव्य
और कर्मठता है,
साम्प्रदायिक जुगाली नहीं।
#श्वेता सिन्हा
लगे रहते हैं
ReplyDeleteअपनी मातृभूमि के
संकटकाल में
अपने सम्प्रदाय की
श्रेष्ठता सिद्ध करने में
हकीकत..त्याज्य हैं ये लोग..
सादर..
बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
जितनी बार तथाकथित अवतारों/पैगम्बरों ने नए-नए सम्प्रदायों और धर्मों को जन्माया है, उतनी बार इंसान/समाज बंटे हैं।
ReplyDeleteआगे भी ये आते रहेंगें तो सब बंटते रहेंगें और नफ़रत के अंधेपन में घिनौनी हरकतें होती रहेंगीं, चाहे जिस किसी भी संप्रदाय की ओर से हो ... शायद ...🤔
( ई धर्मवे तअ संकट काल पैदा करता है जी ...☺)
जी...सहमत है।
Deleteबहुत आभार आपका।
सादर।
किसी देश के
ReplyDeleteसच्चे नागरिक की
धर्म की परिभाषा
मनुष्यता का कर्तव्य
और कर्मठता है,
साम्प्रदायिक जुगाली नहीं।
निचोड़ है।
बहुत आभारी हूँ सर।
Deleteआपका आशीष मिला।
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
05/04/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी आभारी हूँ कुलदीप जी।
Deleteसादर।
प्रिय श्वेता , मानवता सबसे ज्यादा धर्म के कारण रक्तरंजित हुई है | सार्थक रचना हमेशा की तरह | सस्नेह -
ReplyDeleteजी दी आभारी हूँँ।
Deleteपरंतु धर्म है क्या आजकल इसी प्रश्न में उलझी हूँ।
सादर।
बहुत सही और सटीक. धर्म की परिभाषा ही बादल गई है.
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ आदरणीया।
Deleteसादर।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ सर।
Deleteसादर।
अमानुषिक,अमानवीय
ReplyDeleteकृतित्वों को
उन्हीं के वंशजों द्वारा
एक दिन अवश्य
धिक्कारा जायेगा!
किसी देश के
सच्चे नागरिक की
धर्म की परिभाषा
मनुष्यता का कर्तव्य
और कर्मठता है,
साम्प्रदायिक जुगाली नहीं।
सही कहा श्वेता जी !
इस अमानुषिक कार्य के लिए इनके आने वाले वंशज भी हमेशा शर्मिंदा रहेंगे
बहुत ही लाजवाब समसामयिक सृजन।
बहुत आभारी हूँ सुधा जी।
Deleteसादर।
सार्थक और सशक्त रचना
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06 -04-2020) को 'इन दिनों सपने नहीं आते'(चर्चा अंक-3663) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत आभारी हूँ रवींद्र जी।
Deleteसादर।
वाकई सुंदर रचना विधर्मियों को आइना दिखाती हुई। बिना किसी लागलपेट के लुआठी दिखाती हुई अपनी विशिष्ट शैली में🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ विश्वमोहन जी।
Deleteसादर।
लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
Deleteसादर।
आपकी रचना को पढ़ कर अंधों को मानवता की राह दिख जाए यही प्रार्थना करता हूँ.
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
Deleteसादर।
अपनी मातृभूमि के
ReplyDeleteसंकटकाल में
अपने सम्प्रदाय की
श्रेष्ठता सिद्ध करने में
इतिहास में
क्रूरता के अध्याय जोड़ते
रीढ़विहीन मनुष्यों की
प्रजातियों के
लज्जाजनक कर्म,
कालक्रम में
नस्लों द्वारा जब
खोदे जायेंंगे
थूके गये
रक्तरंजित धब्बों की.. गहन चिंतन के साथ बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी.
सादर
बहुत आभारी हूँ अनीता जी।
Deleteसादर।
अति सुंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ सर।
Deleteधर्म की परिभाषा
ReplyDeleteमनुष्यता का कर्तव्य
और कर्मठता है,
साम्प्रदायिक जुगाली नहीं।
बेहतरीन अभिव्यक्ति श्वेता जी ,सादर नमन
बहुत आभारी हूँ प्रिय कामिनी जी।
Deleteसादर।
वर्तमान समय को साधती और सच को उजागर करती
ReplyDeleteप्रभावी रचना
बधाई
बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
Deleteसादर।
सुनी सुनाई बातों को तथ्य ना माने
ReplyDeleteतथ्य सबूतों के साथ पेश होते हैं
सबूत के अभावों में कुछ भी लिखने से बेहतर है कुछ भी ना लिखना।
खैर जांच में सच निकलता है तो इस कविता से जोरदार कोई कविता नहीं।
किस घटना की जाँच रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रहे हैं आप? किस बात का सुबूत चाहिए आपको...!
Deleteकिसी भी विवादित विषय पर हम यूँ भी नहीं लिखते हैं।
सच्चाई और सुबूत के आधार पर कविता का मापदंड निर्धारित करना ही सही है शायद।
आभारी हूँ रोहित जी आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए।
सादर।