पहली कक्षा में एडमिशन के बाद नये-नये यूनीफॉर्म ,जूतों,नयी पेंसिल,रबर, डॉल.वाली पेंसिल-बॉक्स , स्माइली आकार की प्लास्टिक की टिफिन-बॉक्स,नया बैग और उसके साथ-साथ
नयी कॉपी-किताबों की ख़ुशबू से पहला परिचय हुआ मेरा।
जब उच्चारण करके किताबें पढ़ना सीखे, अक्षर-शब्द जोड़कर अटक-अटककर तो हिंदी की किताबों की कहानी और कविताएँ बहुत अपनी लगी थी और उत्सुकता वश पूरी किताब पढ़ गये थे
प्रथम कक्षा में पढ़ी पहली कविता की चंद पंक्तियाँ आज तक याद है..
पूरब का दरवाजा खोल
धीरे-धीरे सूरज गोल
लाल रंग बिखराता है
ऐसे सूरज आता है....
धीरे-धीरे सूरज गोल
लाल रंग बिखराता है
ऐसे सूरज आता है....
और
काली कोयल बोल रही है
डाल-डाल पर डोल रही है....
डाल-डाल पर डोल रही है....
फिर तो जैसे हिंदी की किताबों से विशेष लगाव जुड़ गया था। घर पर मेरी दादी को बाल-पत्रिका पढ़ने का शौक था इसलिए चम्पक,नंदन,चंदामामा,पराग, पिंकी, बिल्लू,मोटू-पतलू,चाचा चौधरी पढ़ते-पढ़ते कब प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद,पंत,निराला और महादेवी वर्मा पढ़ने लगे याद ही नहीं।
पर पढ़ना सदा से ही पसंद है।
कोई नयी साहित्यिक किताब हाथ आई नहीं कि सारा काम-धाम भूलकर डूब जाते हैं जब तक खत्म न हो जाये। इन किताबों के चक्कर में कभी-कभी खाना जल जाता तो कभी कोई जरुरी अप्वाइंटमेंट भूल जाते हैं पर किताबों से मोह कभी कम नहीं होता।
पर पढ़ना सदा से ही पसंद है।
कोई नयी साहित्यिक किताब हाथ आई नहीं कि सारा काम-धाम भूलकर डूब जाते हैं जब तक खत्म न हो जाये। इन किताबों के चक्कर में कभी-कभी खाना जल जाता तो कभी कोई जरुरी अप्वाइंटमेंट भूल जाते हैं पर किताबों से मोह कभी कम नहीं होता।
निर्जीव किताबों की सजीव बातें
भाती हैं मन को एकांत मुलाकातें
किताबें मेरी सबसे खास दोस्त
जिसके पन्नों से आती खुशबू में डूबकर
जिनके सानिध्य में सुख-दुख भूलकर
शब्दांकन में,पात्रों में,
आम ज़िंदगी के किरदारों से
रु-ब-रु होकर,
उसमें निहित संदेश आत्मसात करके
विचारों का एक अलग ब्रह्मांड रचकर,
उसमें विचरकर, भावों के सितारे तोड़कर
उसे कोरे पन्नों पर सजाना
बहुत अच्छा लगता है।
©श्वेता सिन्हा
जिनके सानिध्य में सुख-दुख भूलकर
शब्दांकन में,पात्रों में,
आम ज़िंदगी के किरदारों से
रु-ब-रु होकर,
उसमें निहित संदेश आत्मसात करके
विचारों का एक अलग ब्रह्मांड रचकर,
उसमें विचरकर, भावों के सितारे तोड़कर
उसे कोरे पन्नों पर सजाना
बहुत अच्छा लगता है।
©श्वेता सिन्हा
निर्जीव किताबों की सजीव बातें
ReplyDeleteभाती हैं मन को एकांत मुलाकातें
किताबें मेरी सबसे खास दोस्त
जिसके पन्नों से आती खुशबू में डूबकर
जिनके सानिध्य में सुख-दुख भूलकर
शब्दांकन में,पात्रों में,
आम ज़िंदगी के किरदारों से
रु-ब-रु होकर,
उसमें निहित संदेश आत्मसात करके
विचारों का एक अलग ब्रह्मांड रचकर,
उसमें विचरकर, भावों के सितारे तोड़कर
उसे कोरे पन्नों पर सजाना
बहुत अच्छा लगता है
सच कहा मेरे मन के भावो को भी शब्द दे दिये आपने...वह भी इतनी खूबसूरती से..
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
पढ़ने के शौक ने ही मुझे ब्लॉग तक पहुँचाया जहाँ छुटकी भी मिली....
ReplyDeleteस्वस्थ्य मानसिकता में सहायक है पढ़ना..
अति सुंदर भावाभिव्यक्ति
स्वस्थ्य रहो दीर्घायु हों
आपकी यादों को हमने भी अनुभव कर लिया। पढकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,आपनें तो हमें भी अपने पुराने दिन याद दिला दिए । बहि खूबसूरत सृजन!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteविश्व पुस्तक दिवस और धरा दिवस की बधाई हो।
बहुत खूब प्रिय श्वेता ! मुझे भी तुम्हारे संस्मरण से अपनी बहुत छोटी कक्षा की किताब में पढ़ी एक कविता स्मरण हो आई --
ReplyDeleteमैया मेरे लिए मंगादे - छोटी धोती खादी की
जिसे पहनकर मैया मैं भी - बन जाऊंगा गाँधी जी
लाखों लोग चले आयेंगे - मेरे दर्शन पाने को
बीच सभा के बैठूंगा मैं - सच्ची बात सुनाने को !!!!!!
सच तो ये है कि दसवीं के बार मेरी गुरु किताबें ही रही | तुम्हारी रचना से पुराने दिन स्मरण हो आये | सस्नेह --
वाह !! सभी स्मृतियां अपनी ही लग रही है कविता दूसरी हो सकती है पर बाल-सुलभ भाव बस वही है श्वेता मेरे अपने।
ReplyDeleteअप्रतिम!!
संस्मरण-सह-कविता में स्मृतियों की खिड़कियाँ ऐसी खुलीं हैं कि पाठक अपने बचपन में लौटकर सुखद यादों में खो जाए जहाँ ताज़ा वैचारिक हवा का पवित्र झोंका मन को प्रफुल्लित कर रहा है।
ReplyDeleteसुंदर सामायिक एवं प्रासंगिक सृजन विश्व पुस्तक दिवस पर।
बचपन की यादों को जीना बहुत सुहाना लगता है. विश्व पुस्तक दिवस पर पुस्तकों के प्रति आपकी जानकार बड़ा अच्छा लगा. नंदन, चन्दा मामा, चाचा चौधरी, चम्पक आदि किताबें बचपन की स्मृतियों में ले गई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है।
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 30 अप्रैल 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आ श्वेता जी, पुस्तकों से आपके लगाव के बारे में इस ब्लॉग से जानने को मिला। आपमें साहित्यान्वेषण की जिज्ञासा इस धुंध भरे वातावरण में तेज रोशनी की तरह है। आप जमशेदपुर से हैं, यह और भी अच्छी बात है। मैं भी जमशेदपुर से हूँ। जमशेदपुर के क्या किसी साहित्यिक समूह से आप जुडी हैं?
ReplyDeleteआप से एक अनुरोध --आप मेरी २०१८ के दिल्ली पुस्तक मेले में प्रकाशित मेरी पुस्तक " डिवाइडर पर कॉलेज जंक्शन" (उपन्यास ) नीचे दिए गए अमेज़न कके लिंक से लॉकडाउन ख़त्म हो जाने के बाद मंगाएं और अपने विचारों से अवगत कराएं. Link : http://amzn.to/2Ddrwm1 (Price Rs104, pages 170) इसे इस लिंक पर अभी सुन सकती हैं। ऑडियो बुक के रूप में स्टोरीटेल के साइट पर इसी वर्ष प्रकाशित हुयी है।
: listen on storytel, link : https://www.storytel.com/in/en/books/1184038-Divider-Par-College-Junction
सादर! ब्रजेन्द्र नाथ