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Tuesday, 9 January 2018

अंकुराई धरा


धूप की उंगलियों ने 
छू लिया अलसाया तन 
सर्द हवाओं की शरारतों से
तितली-सा फुदका मन

तन्वंगी कनक के बाणों से
कट गये कुहरीले पाश
बिखरी गंध शिराओं में
मधुवन में फैला मधुमास

मन मालिन्य धुल गया
झर-झर झरती निर्झरी 
कस्तूरी-सा मन भरमाये
कंटीली बबूल छवि रसभरी

वनपंखी चीं-चीं बतियाये
लहरों पर गिरी चाँदी हार
अंबर के गुलाबी देह से फूट
अंकुराई धरा, जागा है संसार

       #श्वेता🍁

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