मौन की चादर डाले
नीले आसमान पर
छींटदार श्वेत बादलों की
छाँव में
बाँह पसारे हवाओं के संग
बहते परिंदे मानो
वक़्त के समुन्दर में
निर्विकार उमड़ते ज्वार
से किनारे पर बिखरे
मोतियों को सहलाते हैं
अक्सर झरोखे के पीछे से
मंत्रमुग्ध नभ में विलीन
स्वप्निल आँखों के कैनवास पर
अनजाने स्पर्श से
जीवित होने लगती हैं
निर्जीव पड़ी तस्वीरें
लंबे देवदार के वृक्षों की कतारों के
ढलान पर लाल बजरी की पगडंडियों से
झील तक पहुँचते रास्ते पर
जंगली पीले फूलों को चूमते
रस पीते भँवरे गुनगुनाने लगते हैं
चौकोर काले चट्टान पर बैठी मैं
घुटनों पर ठोढ़ी टिकाये
हथेलियों से गालों को थामे
हवाएँ रह-रह कर
बादामी ज़ुल्फ़ों से खेलती है
तब धड़कनों को चुपचाप सुनती
मदहोश ख़्याल में गुम
दूर तक फैले गहरे हरे पानी के ग़लीचे पर
देवदार के पत्तों से छनकर आती
धुंधली सूरज की मख़मली किरणें
जो झीेल के आईने में गिरते ही
बदल जाती है
इंद्रधनुषी रंगों में
और पानी से खेलती हथेलियों पर
पसर जाती है बाँधनी चुनर सी
उन चटकीले रंगों को
मल कर मन के बेजान पन्नों पर
उकेरती हूँ
शब्दों की तूलिका से
कविताओं के इंद्रधनुष।
#श्वेता सिन्हा