इन ख़ामोशियों में बड़ी बेक़रारी है,
ग़ुजरते लम्हों में ग़म कोई तारी है।
गुज़रता न था एक पल जिनका,
अपनी परछाई भी उन पे भारी है।
हर्फ़ तर-ब-तर धुंधला गयी तस्वीर,
दिल में धड़कनों की जगह आरी है।
दुनियावी शोर से बेख़बर रात-दिन,
उनकी आहट की इन्तज़ारी है।
हिज़्र के जाम पीकर भी झूम रहे,
अजब उनके चाहत की ख़ुमारी है।
हादसों का सफ़र खुशियों से ज्यादा,
कुछ इस तरह चल रही सवारी है।
ऐ ज़िंदगी! जी चुके जी-भर हम,
अब जश्न-ए-मौत तुम्हारी बारी है।
#श्वेता सिन्हा