इन ख़ामोशियों में बड़ी बेक़रारी है,
ग़ुजरते लम्हों में ग़म कोई तारी है।
गुज़रता न था एक पल जिनका,
अपनी परछाई भी उन पे भारी है।
हर्फ़ तर-ब-तर धुंधला गयी तस्वीर,
दिल में धड़कनों की जगह आरी है।
दुनियावी शोर से बेख़बर रात-दिन,
उनकी आहट की इन्तज़ारी है।
हिज़्र के जाम पीकर भी झूम रहे,
अजब उनके चाहत की ख़ुमारी है।
हादसों का सफ़र खुशियों से ज्यादा,
कुछ इस तरह चल रही सवारी है।
ऐ ज़िंदगी! जी चुके जी-भर हम,
अब जश्न-ए-मौत तुम्हारी बारी है।
#श्वेता सिन्हा
दर्द को महसूस कर गया। वाकई
ReplyDelete"हादसों का सफ़र खुशियों से ज्यादा,
कुछ इस तरह चल रही सवारी है।"
सुंदर लेखन
ReplyDeleteबेहतरीन रचना..
ReplyDeleteगुज़रता न था एक पल जिनका,
अपनी परछाई भी उन पे भारी है।
उम्दा अश़आर..
सादर..
बे-क़रारी सी बे-क़रारी है
ReplyDeleteवस्ल है और फ़िराक़ तारी है।- जॉन एलिया
परछाइयों की बात न कर रंग-ए-हाल देख
आँखों से अब हवा-ओ-हवस का मआ'ल देख। - शमीम हनफ़ी
कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते। - अहमद फ़राज़
किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
बशर को ज़ीस्त मिली मौत को बहाना मिला। - फ़ानी बदायुनी
आपकी रचना पढ़ते वक्त ये सभी शेर आंखों के सामने से गुजरे।
कमाल के लिखे हो।
यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता
ऐ ज़िंदगी! जी चुके जी-भर हम,
ReplyDeleteअब जश्न-ए-मौत तुम्हारी बारी है।
श्वेता दी, जिंदगी की कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना।
उम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteहिज़्र के जाम पीकर भी झूम रहे,
ReplyDeleteअजब उनके चाहत की ख़ुमारी है।
प्यार और जुदाई के एहसासों से सजी भावपूर्ण रचना प्रिय श्वेता। 👌👌👌👌सस्नेह --
हिज़्र के जाम पीकर भी झूम रहे,
ReplyDeleteअजब उनके चाहत की ख़ुमारी है
प्यार और जुदाई से एहसासों से सजी भावपूर्ण रचना प्रिय श्वेता 👌👌👌 सस्नेह
वाह श्वेता उम्दा सृजन !
ReplyDeleteअनछुए एहसासों से सुसज्जित बेहतरीन ग़ज़ल।
वाह!!श्वेता ,क्या बात है ,बहुत ही उम्दा सृजन !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रिय बहन अप्रतिम सृजन।
ReplyDeleteइन ख़ामोशियों में बड़ी बेक़रारी है,
ReplyDeleteग़ुजरते लम्हों में ग़म कोई तारी है।
बड़ी मुश्किल से दिल की बेकरारी को करार आया
जब हमने गुज़रते लम्हों के साथ गम को भगाया ।
गुज़रता न था एक पल जिनका,
अपनी परछाई भी उन पे भारी है।
ये शेर कुछ यूं कह रहा
रहते थे कभी उनके दिल में ...... आज गुहगारों की तरह
हर्फ़ तर-ब-तर धुंधला गयी तस्वीर,
दिल में धड़कनों की जगह आरी है
भले ही धुंधला गयी हो तस्वीर जो दिल में सजाई थी
तेरी बेरूखी ने जैसे दिल पर आरी चलाई थी ।
दुनियावी शोर से बेख़बर रात-दिन,
उनकी आहट की इन्तज़ारी है।
हर आहट पर लगा कि वो है
पर चारों ओर बस मौन है ।
हिज़्र के जाम पीकर भी झूम रहे,
अजब उनके चाहत की ख़ुमारी है।
चाहत की खुमारी किस कदर चढ़ी है
ये भी भूल गए कि ये विरह की घड़ी है ।
हादसों का सफ़र खुशियों से ज्यादा,
कुछ इस तरह चल रही सवारी है।
हादसों का क्या वो तो होते रहते हैं
सफर जारी रहे बस यही तम्मना करते हैं
ऐ ज़िंदगी! जी चुके जी-भर हम,
अब जश्न-ए-मौत तुम्हारी बारी है।
अभी कहाँ मौत तुम्हारी बारी
अभी तो शुरू ही हुई है ज़िन्दगी बेचारी ।
खैर ! हो गया खूब इस ग़ज़ल का चिथडफिकेशन । ये शब्द मेरा ही ईजाद किया हुआ है । अभी तक जो कुछ लिखा उसे दिल पर मत लेना । यूँ ही गंभीरता में हास्य का तड़का है ।
यूँ ये ग़ज़ल बहुत खूबसूरत । मन तक पहुंची हर बात ।
बहुत ही लाजवाब तुकबंदी.. मन मोह गई..आपको मेरा नमन आदरणीय दीदी..
Deleteआपकी गज़ल तो लाज़बाब है ही उस पर सोने-पे-सुहागा सगीता जी की एक एक उन्दा शेर है।
ReplyDeleteआप दोनों को दिल से नमन
वाह👌👌👌
ReplyDeleteजब मिले दो सुखनवर्
ग़ज़ल हो गई!
बढिया रचना को चार चाँद लग गए!!
हर शेर उम्दा ..किसकी तारीफ़ करूं समझ नहीं आया..पूरी गजल लाजवाब..
ReplyDeleteदोबारा से पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteवाह उम्दा !ग़ज़ल ने ग़ज़ल को ग़ज़ल से नवाजा।
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