Sunday 10 November 2019

इंद्रधनुष



ओ मेरे मनमीत
लगभग हर दिन
तुमसे नाराज़ होकर
ख़ुद को समेटकर
विदा कर आती हूँ
हमारा प्रेम....
फिर कभी तुम्हें
अपनी ख़ातिर
व्याकुल न करने का
संकल्प लेकर..
मुझसे बेहतर
 प्रेम का तुम्हें
प्रतिदान मिले
प्रार्थनाओं के साथ....,


पर एक डग भी नहीं
बढ़ा पाती,..
मेरा आँचल पकड़े
एक ज़िद्दी बच्चे की तरह...
ख़्यालों में तुम्हारे मुस्कुराते ही
संकल्पों का पर्वत
पिघलकर अतृप्त 
सरिता-सा
तुम्हारे नेह की बारिश 
में भींगने को
आतुर हो जाता है।

धवल चाँद का पाश 
पायलों से घायल
ख़ुरदरे पाँवों में 
 पहना देते हो तुम
मल देते हो मेरी
गीली पलकों पर
मुट्ठी भर चाँदनी....
मैं खीझ उठती हूँ
आखिर क्यों चाहिये 
तुम्हें मेरा बँटा मन?
और तुम कहते हो
पूर्णता शून्य है....

फिर हौले से
मेरी मेघ आच्छादित
पलकों से चुनकर
कुछ बूँदें रख देते हो
अपने मन के 
आसमान पर..
गुस्से का कोहरा
छँटने के बाद
भावनाओं के सूरज की
किरणें जब मुझसे
टकराकर तुम्हें छुये तो
क्षितिज के कोर पर उगे
प्रेम के अनछुये इंद्रधनुष,
जिसकी छाँव में
हम आजीवन बुनते रहेंं
अनदेखे स्वप्न और
सुलझाते रहें गाँठ
जीवन के जटिल सूत्रों के

#श्वेता सिन्हा

13 comments:

  1. अनेकानेक बिम्बों को समेटे इंद्रधनुषी मनमोहक रचना
    उम्दा सृजन

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    1. आपका आशीष मिला।
      बेहद आभारी हूँ दी सादर शुक्रिया।

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  3. जीवन की जटिलता और प्रेम को समेटे अद्वितीय रचना

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  4. इंद्रधनुषी रूप-रंगों सा सजा सुंदर रचना।

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 10 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. फिर कभी तुम्हें
    अपनी ख़ातिर
    व्याकुल न करने का
    संकल्प लेकर..
    बहुत सुंदर प्रिय श्वेता | किसी के मन को ना दुखाने का संकल्प ही सच्चा प्रेम है | प्रेम पगी सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |

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  7. मन की अगनित परतों में दबी प्रेम की ये विविध रूपों से सज्जित अभिव्यक्ति ऐसी ही है जैसे कोई गोताखोर मनोयोग से तल से नायाब मोती लेकर ही निकलता है, प्रेम पर मंथन कर सदा अतुल्य भावों का सृजन करना आपकी लेखनी की अनुपम मिसाल है।

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-11-2019) को    "आज नहाओ मित्र"   (चर्चा अंक- 3517)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  9. तुम्हारे मुस्कुराते ही
    संकल्पों का पर्वत
    पिघलकर अतृप्त
    सरिता-सा
    तुम्हारे नेह की बारिश
    में भींगने को
    आतुर हो जाता है।
    वाह!!!
    प्रेम की पराकाष्ठा और मन के भावों को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है आपने...
    बहुत ही लाजवाब सृजन...।

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  10. प्रेम जटिल होते हुए भी कितना निश्छल होता है ...
    एक बूँद सब कुछ बहा ले जाती है ... फिर रह जाती हैं मौसम की मीठी फुहार ... प्रेम की और अग्रसर होते ...

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  11. श्वेता दी, प्यार को अभिव्यक्त करना बहुत ही कठीन हैं। क्योंकि इसे अभिव्यक्त करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं। आपने इसे बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया हैं।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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