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Friday, 2 February 2018

कोमल मन हूँ मैं


ज्योति मैं पूजा की पावन
गीतिका की छंद हूँ मैं
धरा गगन के मध्य फैली
एक क्षितिज निर्द्वन्द्व हूँ मैं

नभ के तारों में नहीं हूँ
ना चाँदनी का तन हूँ मैं
कमलनयन प्रियतम की मेरे
नयनों का उन्मन हूँ मैं

न ही तम में न मैं घन में
न मिलूँ मौसम के रंग में
पाषाण मोम बन के बहे
वो मीत कोमल मन हूँ मैं

जो छू ना पाये हिय तेरा
वो गीत बनकर क्या करूँ
चिर सुहागन प्रीति पथ में
अमिट रहे वो क्षण हूँ मैं

     #श्वेता🍁

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