गणतंत्र दिवस पर
एक आम आदमी के मन
का गीत
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जीवन के
हर दिवस के
कोरे पृष्ठ पर,
वह लिखना चाहता है
अपने सिद्धांत,ऊसूल,
ईमानदारी और सच्चाई
की नियमावली,
सुसज्जित कर्म से
मानवता और प्रेम के
खिलखिलाते
मासूम गीत।
जरुरत,साधन,
जीने की ज़द्दोज़हद
और भूख की
असहनीय
वेदना से तड़पता
आम आदमी
रोटी और भात के
दो-चार कौर के लिए
संघर्षरत हर क्षण में
लिखता है
फटेहाल जेब
को सीने की
चेष्टा में
हसरतों का गीत।
लहुलुहान होते
दाँव-पेंच,
कारगुजारियों,
सही-गलत के
कश्मकश से पड़े
मन के फफोलों से
पसीजता है
मवाद असंतोष का,
उसे जगभर से
छुपाने की कोशिश में
रुँधे कंठोंं से फूटता है
घुटन का गीत।
बचपन की चंचलता
यौवन की बेफ्रिक्री
लीलते
जिम्मेदारियों से
झुके कंधे
अल्पवय में
झुर्रियों को गिनते
आजीवन
आभासी खुशियों
को जुटाता
लिखता है
वो उम्मीद का गीत
#श्वेता सिन्हा