गणतंत्र दिवस पर
एक आम आदमी के मन
का गीत
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जीवन के
हर दिवस के
कोरे पृष्ठ पर,
वह लिखना चाहता है
अपने सिद्धांत,ऊसूल,
ईमानदारी और सच्चाई
की नियमावली,
सुसज्जित कर्म से
मानवता और प्रेम के
खिलखिलाते
मासूम गीत।
जरुरत,साधन,
जीने की ज़द्दोज़हद
और भूख की
असहनीय
वेदना से तड़पता
आम आदमी
रोटी और भात के
दो-चार कौर के लिए
संघर्षरत हर क्षण में
लिखता है
फटेहाल जेब
को सीने की
चेष्टा में
हसरतों का गीत।
लहुलुहान होते
दाँव-पेंच,
कारगुजारियों,
सही-गलत के
कश्मकश से पड़े
मन के फफोलों से
पसीजता है
मवाद असंतोष का,
उसे जगभर से
छुपाने की कोशिश में
रुँधे कंठोंं से फूटता है
घुटन का गीत।
बचपन की चंचलता
यौवन की बेफ्रिक्री
लीलते
जिम्मेदारियों से
झुके कंधे
अल्पवय में
झुर्रियों को गिनते
आजीवन
आभासी खुशियों
को जुटाता
लिखता है
वो उम्मीद का गीत
#श्वेता सिन्हा
वा..व्व...श्वेता, गीतों के भी कितने प्रकार बता दिए आपने। सच में इंसान जब जिस स्थिति में रहता हैं उसी स्थिति कब मद्देनजर वो गीत लिखना चाहता हैं। सुंदर प्रस्तूति।
ReplyDeleteVery well said. Realistic though and beautiful words. Great. Waah waah.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी व्यथा आम आदमी की ....,यथार्थ को प्रभावी शब्दों में ढाल है आपने श्वेता जी ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 26 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर.... रचना स्वेता जी स्नेह
ReplyDeleteआम आदमी के मन के गीत.... बहुत ही सुन्दर बहुत लाजवाब....
ReplyDeleteजिम्मेदारियों से
झुके कंधे
अल्पवय में
झुर्रियों को गिनते
आजीवन
आभासी खुशियों
को जुटाता
लिखता है
वो उम्मीद का गीत
मासूम हसरतों की घुटन से निकलता उम्मीदों का उम्दा गणतंत्र गीत! बधाई!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर श्वेता ! आज के दिन गीत गाना तो बनता ही है -
ReplyDeleteदिल को बहलाने को ग़ालिब, ये ख़याल अच्छा है.
अरे साहब ! हम सिर्फ गीत ही गाते रहेंगे या फिर इस बेबस "कामन मैन"को उसकी उम्मीद भी वापस दिलवाएंगे। अब तो अपना गणतंत्र भी उम्रदराज हो गया है।
Deleteसर्वप्रथम गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
ReplyDeleteइस शुभ अवसर पर गीत गाना बनता है शुबकमनाए
जनसाधारण का ये गीत विह्वल कर गया
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया दीदी जी
सच है कि एक आम आदमी ही है जो संवेदनशील है पर सुख दुःख और भावनाओं से प्रभावित रहता है ... न चाहते हुए भी गतिशील रहता है ... सुंदर रचना ...
ReplyDeleteकारगुजारियों,
ReplyDeleteसही-गलत के
कश्मकश से पड़े
मन के फफोलों से
पसीजता है
बहुत रचनात्मकता से लिखी गयी कविता,बस वाह के शिवा कुछ कह नही सकते।
आभार