Friday, 25 January 2019

गीत

गणतंत्र दिवस पर
एक आम आदमी के मन
का गीत
----

जीवन के 
हर दिवस के
कोरे पृष्ठ पर,
वह लिखना चाहता है
अपने सिद्धांत,ऊसूल,
ईमानदारी और सच्चाई 
की नियमावली,
सुसज्जित कर्म से
मानवता और प्रेम के
खिलखिलाते
मासूम गीत।

जरुरत,साधन,
जीने की ज़द्दोज़हद
और भूख की 
असहनीय
वेदना से तड़पता
आम आदमी
रोटी और भात के
दो-चार कौर के लिए
संघर्षरत हर क्षण में
लिखता है
फटेहाल जेब 
को सीने की 
चेष्टा में  
हसरतों का गीत।

लहुलुहान होते
दाँव-पेंच,
कारगुजारियों,
सही-गलत के
कश्मकश से पड़े 
मन के फफोलों से
पसीजता है
मवाद असंतोष का,
उसे जगभर से
छुपाने की कोशिश में
रुँधे कंठोंं से फूटता है
घुटन का गीत।

बचपन की चंचलता
यौवन की बेफ्रिक्री
लीलते
जिम्मेदारियों से 
झुके कंधे
अल्पवय में
झुर्रियों को गिनते
आजीवन 
आभासी खुशियों
को जुटाता
लिखता है
वो उम्मीद का गीत

#श्वेता सिन्हा




13 comments:

  1. वा..व्व...श्वेता, गीतों के भी कितने प्रकार बता दिए आपने। सच में इंसान जब जिस स्थिति में रहता हैं उसी स्थिति कब मद्देनजर वो गीत लिखना चाहता हैं। सुंदर प्रस्तूति।

    ReplyDelete
  2. Very well said. Realistic though and beautiful words. Great. Waah waah.

    ReplyDelete
  3. हृदयस्पर्शी व्यथा आम आदमी की ....,यथार्थ को प्रभावी शब्दों में ढाल है आपने श्वेता जी ।

    ReplyDelete
  4. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 26 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर.... रचना स्वेता जी स्नेह

    ReplyDelete
  6. आम आदमी के मन के गीत.... बहुत ही सुन्दर बहुत लाजवाब....
    जिम्मेदारियों से
    झुके कंधे
    अल्पवय में
    झुर्रियों को गिनते
    आजीवन
    आभासी खुशियों
    को जुटाता
    लिखता है
    वो उम्मीद का गीत

    ReplyDelete
  7. मासूम हसरतों की घुटन से निकलता उम्मीदों का उम्दा गणतंत्र गीत! बधाई!!!

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर श्वेता ! आज के दिन गीत गाना तो बनता ही है -
    दिल को बहलाने को ग़ालिब, ये ख़याल अच्छा है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. अरे साहब ! हम सिर्फ गीत ही गाते रहेंगे या फिर इस बेबस "कामन मैन"को उसकी उम्मीद भी वापस दिलवाएंगे। अब तो अपना गणतंत्र भी उम्रदराज हो गया है।

      Delete
  9. सर्वप्रथम गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
    इस शुभ अवसर पर गीत गाना बनता है शुबकमनाए

    ReplyDelete
  10. जनसाधारण का ये गीत विह्वल कर गया
    मर्मस्पर्शी रचना
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया दीदी जी

    ReplyDelete
  11. सच है कि एक आम आदमी ही है जो संवेदनशील है पर सुख दुःख और भावनाओं से प्रभावित रहता है ... न चाहते हुए भी गतिशील रहता है ... सुंदर रचना ...

    ReplyDelete
  12. कारगुजारियों,
    सही-गलत के
    कश्मकश से पड़े
    मन के फफोलों से
    पसीजता है

    बहुत रचनात्मकता से लिखी गयी कविता,बस वाह के शिवा कुछ कह नही सकते।
    आभार

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...