क्षितिज का
सिंदूरी आँचल
मुख पर फैलाये
सूरज
सागर की
इतराती लहरों पर
बूँद-बूँद टपकने लगा।
सागर पर
पाँव छपछपता
लहरों की
एडि़यों में
फेनिल झाँझरों से
सजाता
रक्तिम किरणों की
महावर।
स्याह होते
रेत के किनारों पर
ताड़ की
फुनगी पर
ठोढ़ी टिकाये
चाँद सो गया
चुपचाप बिन बोले
चाँदनी के
दूधिया छत्र खोले।
मौन प्रकृति का
रुप सलोना
मुखरित मन का
कोना-कोना
खुल गये पंख
कल्पनाओं के
छप से छलका
याद का दोना।
भरे नयनों के
रिक्त कटोरे
यादों के
स्नेहिल स्पर्शों से
धूल-धूसरित,
उपेक्षित-सा
पड़ा रहा
तह में बर्षों से।
-श्वेता सिन्हा
अद्भुत छता बिंबो की! सुंदर!!!
ReplyDeleteवाह !! बेहतरीन सृजनात्मकता श्वेता जी !
ReplyDeleteWaah waah, this is what we call the composition writing, each word is arranged like pearl.
ReplyDeleteGreat.. Keep writing.
बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया
ReplyDeleteसादर
सुंदर बिम्ब विधान के साथ सुकोमल रचना प्रिय श्वेता | हार्दिक शुभकामनाएं और मेरा प्यार |
ReplyDeleteउद्दीपन बिम्ब या प्रतिबिम्ब है मुझे नहीं पता.
ReplyDeleteलेकिन साहित्य के रसपान का स्वाद अव्व्ला है.
'याद का दोना' क्या खूब लगाया है आपने...वाह
वाह आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर
ReplyDeleteमनभावन रचना
सादर नमन शुभ रात्रि
लाजवाब सृजन....
ReplyDeleteवाह!!!
"...
ReplyDeleteताड़ की
फुनगी पर
ठोढ़ी टिकाये
चाँद सो गया
चुपचाप बिन बोले
चाँदनी के
दूधिया छत्र खोले।
..."
कल्पनाशक्ति लाजवाब है।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह अद्भुत दृश्यांकन बहुत ही सुन्दर बिंबात्मक
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteअद्भुत!!!
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