मन मेरा औघड़ मतवाला
पी प्रेम भरा हाला प्याला
मन मगन गीत गाये जोगी
चितचोर मेरा मुरलीवाला
मंदिर , मस्जिद न गुरुद्वारा
गिरिजा ,जग घूम लिया सारा
मन मदिर पिपासा तृप्त हुई
रस प्रीत में भीगा मन आला
मोह आकर्षण उद्दीपन में
पी प्रीत उपहार संजीवन से
मन का मनका श्रृंगारित कर
हिय गूँथ लिया जीवन माला
मद्धम-मद्धम जलने को विवश
मतंग पतंग मंडराये अवश
खो प्रीत सरित आकंठ डूब
न मिट पायी विरहा ज्वाला
चुन पलकों से स्मृति अवशेष
टुकड़े मानस-दर्पण के विशेष
दृग पट में अंकित मीत छवि
वह बिम्ब बना उर का छाला
--श्वेता सिन्हा
"हरिवंश राय बच्चन" पुण्य तिथि(१८जनवरी) पर सादर समर्पित।
चुन पलकों से स्मृति अवशेष
ReplyDeleteटुकड़े मानस-दर्पण के विशेष
दृग पट में अंकित मीत छवि
वह बिम्ब बना उर का छाला...
सुंदर रचना 👌👌👌👌👌👌
बेहद आभारी हूँ.आदरणीय पुरुषोत्तम जी..आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई..सादर शुक्रिया आपका।
Deleteहिंदी भाषा के मशहूर कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन की पुण्यतिथि पर
ReplyDeleteआनंद आ गया आज की प्रस्तुति पढ़कर मेरे प्रिय कवि को उनकी पुण्य-तिथि पर सादर नमन !!
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना, श्वेता दी।
ReplyDeleteGood and beautiful composition. Keep writing....... our best wishes.
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुंदर सृजन
ReplyDeleteबधाई
सादर
बहुत खुबसुरत रचना
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशानदार
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर श्रद्धांजलि, बच्चनजी की ही बोली में! सराहना से परे!!!
ReplyDeleteमन मगन गीत गाये जोगी
ReplyDeleteचितचोर मेरा मुरलीवाला
क्या बात है स्वेता जी मज़ा आ गया।जब कुछ सुंदर पढ़ना होताहै तो आपके ब्लॉग पे आ जाता हूँ।
आभार
बेहतरीन ...., लाजवाब सृजनात्मकता !!
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी आपकी इस रचना को कल से आजतक में ग्यारहवी बार पढ़ रही हूँ और अबतक नही समझ पायीं की क्या कहूँ
ReplyDeleteसच मूक हो गये हम...बस मन कर रहा पढ़ती जाऊँ
हर शब्द में सुकून है। उस चितचोर की तरह आपकी रचना ने भी चित चुरा लिया
अब हम तो बस वाहवाही कर सकते हैं
वाह वाह वाह वाह....
सादर नमन शुभ रात्रि
बुझेगी कैसे ये विरह ज्वाला
ReplyDeleteउफ्फ तेरी यादों का सहारा
न तुम न तेरा साया.
भटकन भटकन में
ठोकर खाई
जग पराया लगे सब पराया.
जितना समझ पाया उतना बहुत अच्छा लगा.
कमाल करती है आपकी लेखनी.
वाह ... बच्चन जी को सच्ची श्रधांजलि हाँ आपके छंद ...
ReplyDeleteबेमिसाल और लाजवाब ... कुछ शब्द आपको पढ़ के बने अभी अभी ...
जो इस मस्ती में डूब गया
जग से मानो वो ऊब गया
पी कर कान्हा की रस हाला
मन नाचे हो कर मतवाला
उर में बैठा मुरलीवाला
मन का मनका श्रृंगारित कर
ReplyDeleteहिय गूँथ लिया जीवन माला
लाजबाब .....,प्रशंसा से परे.. ,बहुत खूब.. स्वेता जी, सादर स्नेह
बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteमोह आकर्षण उद्दीपन में
ReplyDeleteपी प्रीत उपहार संजीवन से
मन का मनका श्रृंगारित कर
हिय गूँथ लिया जीवन माला
प्रिय श्वेता -- सच कहूं तो शब्द नहीं मिल रहे -- सराहना से परे है ये रचना | आकंठ अनुराग में डूब कर रची गयी रचना हर दृष्टि से उत्कृष्ट है | इसके लिए हार्दिक शुभकामनायें और मेरा प्यार |
मद्धम-मद्धम जलने को विवश
ReplyDeleteमतंग पतंग मंडराये अवश
खो प्रीत सरित आकंठ डूब
न मिट पायी विरहा ज्वाला
वाह!!!
इतनी लाजवाब कि बस वाह!!!!!
अद्भुत!!!
मोह आकर्षण उद्दीपन में
ReplyDeleteपी प्रीत उपहार संजीवन से
मन का मनका श्रृंगारित कर
हिय गूँथ लिया जीवन माला....बहुत ही सुन्दर आदरणीया
सादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 18 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteचुन पलकों से स्मृति अवशेष
ReplyDeleteटुकड़े मानस-दर्पण के विशेष
दृग पट में अंकित मीत छवि
वह बिम्ब बना उर का छाला
अद्भुद और बेजोड़ सृजन अनुजा ...