Friday, 18 January 2019

मन मेरा


मन मेरा औघड़ मतवाला
पी प्रेम भरा हाला प्याला
मन मगन गीत गाये जोगी
चितचोर मेरा मुरलीवाला

मंदिर , मस्जिद न गुरुद्वारा
गिरिजा ,जग घूम लिया सारा
मन मदिर पिपासा तृप्त हुई
रस प्रीत में भीगा मन आला

मोह आकर्षण उद्दीपन में
पी प्रीत उपहार संजीवन से
मन का मनका श्रृंगारित कर
हिय गूँथ लिया जीवन माला

मद्धम-मद्धम जलने को विवश
मतंग पतंग मंडराये अवश
खो प्रीत सरित आकंठ डूब
न मिट पायी विरहा ज्वाला

चुन पलकों से स्मृति अवशेष
टुकड़े मानस-दर्पण के विशेष
दृग पट में अंकित मीत छवि
वह बिम्ब बना उर का छाला

--श्वेता सिन्हा

"हरिवंश राय बच्चन" पुण्य तिथि(१८जनवरी) पर सादर समर्पित।


23 comments:

  1. चुन पलकों से स्मृति अवशेष
    टुकड़े मानस-दर्पण के विशेष
    दृग पट में अंकित मीत छवि
    वह बिम्ब बना उर का छाला...
    सुंदर रचना 👌👌👌👌👌👌

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    1. बेहद आभारी हूँ.आदरणीय पुरुषोत्तम जी..आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई..सादर शुक्रिया आपका।

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  2. हिंदी भाषा के मशहूर कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन की पुण्यतिथि पर
    आनंद आ गया आज की प्रस्तुति पढ़कर मेरे प्रिय कवि को उनकी पुण्य-तिथि पर सादर नमन !!

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  3. बहुत ही बेहतरीन रचना

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  4. बहुत ही बढ़िया रचना, श्वेता दी।

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  5. Good and beautiful composition. Keep writing....... our best wishes.

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  6. वाह बहुत ही सुंदर सृजन
    बधाई
    सादर

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  7. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
    शानदार

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  9. सुन्दर श्रद्धांजलि, बच्चनजी की ही बोली में! सराहना से परे!!!

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  10. मन मगन गीत गाये जोगी
    चितचोर मेरा मुरलीवाला

    क्या बात है स्वेता जी मज़ा आ गया।जब कुछ सुंदर पढ़ना होताहै तो आपके ब्लॉग पे आ जाता हूँ।
    आभार

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  11. बेहतरीन ...., लाजवाब सृजनात्मकता !!

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  12. आदरणीया दीदी जी आपकी इस रचना को कल से आजतक में ग्यारहवी बार पढ़ रही हूँ और अबतक नही समझ पायीं की क्या कहूँ
    सच मूक हो गये हम...बस मन कर रहा पढ़ती जाऊँ
    हर शब्द में सुकून है। उस चितचोर की तरह आपकी रचना ने भी चित चुरा लिया
    अब हम तो बस वाहवाही कर सकते हैं
    वाह वाह वाह वाह....
    सादर नमन शुभ रात्रि

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  13. बुझेगी कैसे ये विरह ज्वाला
    उफ्फ तेरी यादों का सहारा
    न तुम न तेरा साया.
    भटकन भटकन में
    ठोकर खाई
    जग पराया लगे सब पराया.

    जितना समझ पाया उतना बहुत अच्छा लगा.
    कमाल करती है आपकी लेखनी.

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  14. वाह ... बच्चन जी को सच्ची श्रधांजलि हाँ आपके छंद ...
    बेमिसाल और लाजवाब ... कुछ शब्द आपको पढ़ के बने अभी अभी ...

    जो इस मस्ती में डूब गया
    जग से मानो वो ऊब गया
    पी कर कान्हा की रस हाला
    मन नाचे हो कर मतवाला
    उर में बैठा मुरलीवाला

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  15. मन का मनका श्रृंगारित कर
    हिय गूँथ लिया जीवन माला
    लाजबाब .....,प्रशंसा से परे.. ,बहुत खूब.. स्वेता जी, सादर स्नेह

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  16. मोह आकर्षण उद्दीपन में
    पी प्रीत उपहार संजीवन से
    मन का मनका श्रृंगारित कर
    हिय गूँथ लिया जीवन माला
    प्रिय श्वेता -- सच कहूं तो शब्द नहीं मिल रहे -- सराहना से परे है ये रचना | आकंठ अनुराग में डूब कर रची गयी रचना हर दृष्टि से उत्कृष्ट है | इसके लिए हार्दिक शुभकामनायें और मेरा प्यार |

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  17. मद्धम-मद्धम जलने को विवश
    मतंग पतंग मंडराये अवश
    खो प्रीत सरित आकंठ डूब
    न मिट पायी विरहा ज्वाला
    वाह!!!
    इतनी लाजवाब कि बस वाह!!!!!
    अद्भुत!!!

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  18. मोह आकर्षण उद्दीपन में
    पी प्रीत उपहार संजीवन से
    मन का मनका श्रृंगारित कर
    हिय गूँथ लिया जीवन माला....बहुत ही सुन्दर आदरणीया
    सादर

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  19. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 18 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  20. चुन पलकों से स्मृति अवशेष
    टुकड़े मानस-दर्पण के विशेष
    दृग पट में अंकित मीत छवि
    वह बिम्ब बना उर का छाला

    अद्भुद और बेजोड़ सृजन अनुजा ...

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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