हाँ,मैंने महसूस किया है
अंधाधुंध दोहन,बर्बादी से
घबराकर,सहमकर
चेतावनी अनसुना करते
स्वार्थी मानवों के
अत्याचार से पीड़ित
पाताल की गहराई में
छिपने को विवश
जलस्त्रोतों को।
हाँ, देख रही हूँ मैं
नित उदास,सिकुड़ते,
सूखते,सिमटते
गंदे नालों को पीकर
अपच के शिकार,
जलाशयों को
रेत में बदलते।
सूखी पपड़ीदार
होंठों पर जीभ फेरते
कंठ भिगाने की व्याकुलता में
गड्ढों में जमा पानी
कटोरे में जमा करते
मासूमों को।
हाँ,देख ही तो रही हूँ मैं
शहरीकरण का लिबास ओढ़े
कंक्रीट जंगलों के
घने परजीवी पेड़ों को
जिसकी जड़ें चूसकर सुखाने को
आतुर हैं धरती का सारा अमृत जल
और विनाश की
पदचाप को अनसुना करते
मानव सभ्यता व
विकास के नाम पर
निर्दयता से बर्बाद करते
अमूल्य जीवनदायी उपहारों को,
छोड़ जायेंगे
अमूल्य जीवनदायी उपहारों को,
छोड़ जायेंगे
प्राकृतिक वसीयत में
आने वाली पीढियों के नाम
खूबसूरत झरने,नदियों,झीलों
ताल-तल्लैयों की मोहक,
डिजिटल तस्वीरें,
बेशकीमती वीडियो वाले
ऐतिहासिक धरोहर और
अथाह खारा समुंदर।
#श्वेता सिन्हा