Friday, 22 March 2019

जल

हाँ,मैंने महसूस किया है
अंधाधुंध दोहन,बर्बादी से
घबराकर,सहमकर
चेतावनी अनसुना करते 
स्वार्थी मानवों के 
अत्याचार से पीड़ित
पाताल की गहराई में
छिपने को विव
जलस्त्रोतों को।

हाँ, देख रही हूँ मैं
नित उदास,सिकुड़ते,
सूखते,सिमटते
गंदे नालों को पीकर
अपच के शिकार,
जलाशयों को 
रेत में बदलते।

सूखी पपड़ीदार
होंठों पर जीभ फेरते
कंठ भिगाने की व्याकुलता में
गड्ढों में जमा पानी
कटोरे में जमा करते 
मासूमों को।

हाँ,देख ही तो रही हूँ मैं
शहरीकरण का लिबास ओढ़े
कंक्रीट जंगलों के
घने परजीवी पेड़ों को
जिसकी जड़ें चूसकर सुखाने को
आतुर हैं धरती का सारा अमृत जल
और विनाश की
पदचाप को अनसुना करते
मानव सभ्यता व
विकास के नाम पर
निर्दयता से बर्बाद करते
अमूल्य जीवनदायी उपहारों को,
छोड़ जायेंगे
प्राकृतिक वसीयत में
आने वाली पीढियों के नाम
खूबसूरत झरने,नदियों,झीलों
ताल-तल्लैयों की मोहक,
डिजिटल तस्वीरें,
बेशकीमती वीडियो वाले
ऐतिहासिक धरोहर और
अथाह खारा समुंदर।

#श्वेता सिन्हा




14 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन रचना

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  2. छोड़ जायेंगे
    प्राकृतिक वसीयत में
    आने वाले पीढियों के नाम
    खूबसूरत झरने,नदियों,झीलों
    ताल-तल्लैयों की मोहक,
    डिजिटल तस्वीरें,
    बिलकुल सही स्वेता जी ,प्रकृति का दोहन इतनी तेज़ी से हो रहा हैंकि वो दिन दुर नहीं ,चिंता का विषय हैं ,बहुत ही सुंदर रचना

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  3. मानव सभ्यता व
    विकास के नाम पर
    निर्दयता से बर्बाद करते
    अमूल्य जीवनदायिनी उपहारों को,
    छोड़ जायेंगे
    प्राकृतिक वसीयत में
    आने वाले पीढियों के नाम
    खूबसूरत झरने,नदियों,झीलों
    ताल-तल्लैयों की मोहक,
    डिजिटल तस्वीरें,
    बस तस्वीरेंं और यादें ही शेष बचेंगी ऐसे हालातों में...
    बहुत ही चिन्तनीय विषय पर सार्थक सटीक एवं सारगर्भित रचना....

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  4. मानव सभ्यता व
    विकास के नाम पर
    निर्दयता से बर्बाद करते
    अमूल्य जीवनदायी उपहारों को,
    छोड़ जायेंगे
    प्राकृतिक वसीयत में
    आने वाली पीढियों के नाम..... बहुत सुंदर। बधाई और आभार।

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  5. यथार्थ पर भयावह तस्वीर आने वाले कल की।
    बहुत ही सटीक रचना चिंतन देती चेतावनी देती।

    अब लगता सिर्फ सागर रह गये
    अपना खारा जल समेटे
    वो भी मीठे होते तो
    उन को भी खाली कर देते ।

    जल बिन जीवन कैसा?

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  6. सदैव की तरह अत्यन्त सुन्दर सृजन श्वेता जी ।

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  7. गंभीर चिंतन उमड़ा है जल के महत्त्व पर प्रकाश डालने हेतु। अंतिम बंद में भयावह भविष्य की तस्वीर उभरती है जो सोचकर डराती है। प्रभावशाली सृजन।

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  8. वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ।

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  9. वाह !बहुत सुन्दर श्वेता जी

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  10. जल और अनेक प्राकृतिक वरदानों का इंसान ने जितना भक्षण किया है उतना किसी ने नहीं ... और आज की पीढ़ी तो सर्वाधिक जिम्मेदार है इसके लिए ... भौतिकता के आवरण के पीछे हम बर्बादी कर रहे हैं ... सार्थक चिंतन करती रचना ...

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  11. देखने को बच भी जायेंगें ये दृश्य
    मगर इस तरह कि न तो छुवन का अहसास होगा, न मिल पायेगी इनसे शीतलता मन को, न ही भिन्नी भिन्नी खुशबु होगी.
    विचारणीय व सत्य रचना
    भयानक रस का अनुपम उदाहरण पेश करती रचना.

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  12. बहुत सुन्दर और सार्थक

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  13. बहुत सुंदर रचना

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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