Tuesday, 26 March 2019

झुर्रियाँ


बलखाती
साँस की ताल पर
अधरों के राग पर
हौले-हौले थिरकती 
सुख-दुख की छेनी और
समय की हथौड़ी के
 प्रहार से बनी
महीन, गहरी,
कलात्मक कलाकृतियाँ,

जीवन के पृष्ठों पर 
बोली-अबोली
कहानियों की गवाह,
अनुभव का
इतिहास बताती 
चेहरे के कैनवास पर
पड़ी स्थायी सलवटें,
जिन्हें छूकर 
असंख्य एहसास 
हृदय के छिद्रों से 
रिसने लगते हैं,

पीढ़ियों की गाथाएँ
हैं लिपिबद्ध 
धुँधली आँखों से
झरते सपनों को
पोपली उदास घाटियों में समेटे
उम्र की तीलियों का
हिसाब करते
जीवन से लड़ते
थके चेहरों के
खूबसूरत मुखौटे उतार कर
यथार्थ से
परिचय करवाती हैं
झुर्रियाँ।

#श्वेता सिन्हा

"विह्वल हृदय धारा" साझा काव्य संकलन पुस्तक 
में प्रकशित।



30 comments:

  1. वाह आदरणीया दीदी जी अद्भुत
    बेहद सुंदर
    तजुर्बे की गवाही देती इन झुर्रियों की खूबसूरती और निखार दी आपने
    सादर नमन

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    1. आभरी हूँ प्रिय आँचल..आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से शुक्रिया।

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  2. उम्र की तीलियों का
    हिसाब करते
    जीवन से लड़ते
    थके चेहरों के
    खूबसूरत मुखौटे उतार कर
    यथार्थ से
    परिचय करवाती हैं
    झुर्रियाँ।...., जीवन के अटल सत्य को बयान करती सुन्दर रचना श्वेता जी👌👌👌👌

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    1. आभारी हूँं मीना जी .आपकी सराहना मन मुदित कर गयी..शुक्रिया हृदयतल से।

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  3. जीवन के पृष्ठों पर
    बोली-अबोली
    कहानियों की गवाह,
    अनुभव का
    इतिहास बताती
    चेहरे के कैनवास पर
    पड़ी स्थायी सलवटें,
    जिन्हें छूकर
    असंख्य एहसास
    हृदय के छिद्रों से. .. बेहतरीन रचना श्वेता जी
    सादर

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    1. बेहद शुक्रिया प्रिय अनीता जी..हृदयतल से बहुत आभारी हूँ।

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  4. खूबसूरत मुखौटे उतार कर
    यथार्थ से
    परिचय करवाती हैं
    झुर्रियाँ। बहुत सटिक आकलन,स्वेता दी।

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    1. आभारी हूँ आदरणीया ...बहुत शुक्रिया।

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  5. बहुत सुंदर रचना 👌👌

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    1. आभारी हूँ अनुराधा जी...शुक्रिया।

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    1. जी आभारी हूँ शुक्रिया।

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  7. Replies
    1. जी आभार हृदयतल से बहुत शुक्रिया।

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  8. इतिहास बताती
    चेहरे के कैनवास पर
    पड़ी स्थायी सलवटें,
    बहुत खूब ,लाजबाब ....

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    1. जी आभारी हूँ कामिनी जी..बहुत आभारी हूँ।

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  10. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 28 मार्च 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी आभारी हूँ रवींद्र जी..शुक्रिया।

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  11. Replies
    1. जी आभारी हूँ..शुक्रिया सर।

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  12. धुँधली आँखों से
    झरते सपनों को
    पोपली उदास घाटियों में समेटे
    उम्र की तीलियों का
    हिसाब करते
    बहुत ही लाजवाब....
    वाह!!!

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    1. आभारी हूँ सुधा जी शुक्रिया।

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  13. झुर्रियां नहीं दस्तावेज़ होते हैं ये समय के ... एक इतिहास छुपाये जीवन का अनुभव लिए जो समय ही दे सकता है ...
    बहुत ही लाजवाब रचना और भाव ...

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    1. आभारी हूँ सर..शुक्रिया।

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  14. भावों का अपूर्व संगम, जीवन के सांध्य काल में समय के अमिट पद चिंहों को अनुभव की नक्काशी झूर्रियों के साथ बहुत गहरी मन को छूती रचना।

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    1. आभारी हूँ..बहुत शुक्रिया।

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  15. चेहरे के कैनवास पर
    पड़ी स्थायी सलवटें,
    जिन्हें छूकर
    असंख्य एहसास
    हृदय के छिद्रों से
    रिसने लगते हैं
    इस रचना की हर पंक्ति काबिले तारीफ है। अर्थपूर्ण रूपकों के प्रयोग से रचना बहुत ही सारगर्भित हो गई है।

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    1. आभारी हूँँ दी आपकी सराहना उत्साह द्विगुणित कर गयी...बहुत बहुत शुक्रिया.. दिल से।

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  16. थके चेहरों के
    खूबसूरत मुखौटे उतार कर
    यथार्थ से
    परिचय करवाती हैं
    झुर्रियाँ।....अटल सत्य को बयान करती रचना

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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