बलखाती
साँस की ताल पर
अधरों के राग पर
हौले-हौले थिरकती
सुख-दुख की छेनी और
समय की हथौड़ी के
प्रहार से बनी
महीन, गहरी,
कलात्मक कलाकृतियाँ,
जीवन के पृष्ठों पर
बोली-अबोली
कहानियों की गवाह,
अनुभव का
इतिहास बताती
चेहरे के कैनवास पर
पड़ी स्थायी सलवटें,
जिन्हें छूकर
असंख्य एहसास
हृदय के छिद्रों से
रिसने लगते हैं,
पीढ़ियों की गाथाएँ
हैं लिपिबद्ध
धुँधली आँखों से
झरते सपनों को
पोपली उदास घाटियों में समेटे
उम्र की तीलियों का
हिसाब करते
जीवन से लड़ते
थके चेहरों के
खूबसूरत मुखौटे उतार कर
यथार्थ से
परिचय करवाती हैं
झुर्रियाँ।
#श्वेता सिन्हा
"विह्वल हृदय धारा" साझा काव्य संकलन पुस्तक
में प्रकशित।
"विह्वल हृदय धारा" साझा काव्य संकलन पुस्तक
में प्रकशित।
वाह आदरणीया दीदी जी अद्भुत
ReplyDeleteबेहद सुंदर
तजुर्बे की गवाही देती इन झुर्रियों की खूबसूरती और निखार दी आपने
सादर नमन
आभरी हूँ प्रिय आँचल..आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से शुक्रिया।
Deleteउम्र की तीलियों का
ReplyDeleteहिसाब करते
जीवन से लड़ते
थके चेहरों के
खूबसूरत मुखौटे उतार कर
यथार्थ से
परिचय करवाती हैं
झुर्रियाँ।...., जीवन के अटल सत्य को बयान करती सुन्दर रचना श्वेता जी👌👌👌👌
आभारी हूँं मीना जी .आपकी सराहना मन मुदित कर गयी..शुक्रिया हृदयतल से।
Deleteजीवन के पृष्ठों पर
ReplyDeleteबोली-अबोली
कहानियों की गवाह,
अनुभव का
इतिहास बताती
चेहरे के कैनवास पर
पड़ी स्थायी सलवटें,
जिन्हें छूकर
असंख्य एहसास
हृदय के छिद्रों से. .. बेहतरीन रचना श्वेता जी
सादर
बेहद शुक्रिया प्रिय अनीता जी..हृदयतल से बहुत आभारी हूँ।
Deleteखूबसूरत मुखौटे उतार कर
ReplyDeleteयथार्थ से
परिचय करवाती हैं
झुर्रियाँ। बहुत सटिक आकलन,स्वेता दी।
आभारी हूँ आदरणीया ...बहुत शुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर रचना 👌👌
ReplyDeleteआभारी हूँ अनुराधा जी...शुक्रिया।
Deleteयथार्थ
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन
जी आभारी हूँ शुक्रिया।
Deleteअद्भुत!
ReplyDeleteजी आभार हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteइतिहास बताती
ReplyDeleteचेहरे के कैनवास पर
पड़ी स्थायी सलवटें,
बहुत खूब ,लाजबाब ....
जी आभारी हूँ कामिनी जी..बहुत आभारी हूँ।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 28 मार्च 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी आभारी हूँ रवींद्र जी..शुक्रिया।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteजी आभारी हूँ..शुक्रिया सर।
Deleteधुँधली आँखों से
ReplyDeleteझरते सपनों को
पोपली उदास घाटियों में समेटे
उम्र की तीलियों का
हिसाब करते
बहुत ही लाजवाब....
वाह!!!
आभारी हूँ सुधा जी शुक्रिया।
Deleteझुर्रियां नहीं दस्तावेज़ होते हैं ये समय के ... एक इतिहास छुपाये जीवन का अनुभव लिए जो समय ही दे सकता है ...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब रचना और भाव ...
आभारी हूँ सर..शुक्रिया।
Deleteभावों का अपूर्व संगम, जीवन के सांध्य काल में समय के अमिट पद चिंहों को अनुभव की नक्काशी झूर्रियों के साथ बहुत गहरी मन को छूती रचना।
ReplyDeleteआभारी हूँ..बहुत शुक्रिया।
Deleteचेहरे के कैनवास पर
ReplyDeleteपड़ी स्थायी सलवटें,
जिन्हें छूकर
असंख्य एहसास
हृदय के छिद्रों से
रिसने लगते हैं
इस रचना की हर पंक्ति काबिले तारीफ है। अर्थपूर्ण रूपकों के प्रयोग से रचना बहुत ही सारगर्भित हो गई है।
आभारी हूँँ दी आपकी सराहना उत्साह द्विगुणित कर गयी...बहुत बहुत शुक्रिया.. दिल से।
Deleteथके चेहरों के
ReplyDeleteखूबसूरत मुखौटे उतार कर
यथार्थ से
परिचय करवाती हैं
झुर्रियाँ।....अटल सत्य को बयान करती रचना