तुम हो तो तार अन्तर के
गीत मधुर गुनगुनाती है
प्रतिपल उठती,प्रतिपल गिरती
साँसें बुलबुल-सी
फुदक-फुदककर शोर मचाती है।
बिना छुए सपनों को मेरे
जीवित तुम कर जाते हो
निर्धूम सुलगते मन पर
चंदन का लेप लगाते हो
शून्य मन मंदिर में रूनझुन बातें
पाजेब की झंकार
रसीली रसधार-सी मदमाती है।
मन उद्विग्न न समझे कुछ
प्राणों के पाहुन ठहर तनिक
विरह पंक में खिलता महमह
श्वास सुवास कुमुदिनी मणिक
आस-अभिलाष की झलमल ज्योति
बाती-सी मुस्काती
उचक-उचककर चँदा को दुलराती है।
हिय सरिता की बूँद-बूँद
तुझमें विलय करूँ आत्मार्पण
तू ही ब्रह्म है तू ही सत्य बस
तुझको मन सर्वस्व समर्पण
जीवन की रिक्त दरारों में अमृत-सी
टप-टप,टिप-टिप
संजीवनी मन की तृषा मिटाती है।
#श्वेता सिन्हा