ठाठें मारता
ज्वार से लबरेज़
नमकीन नहीं मीठा समुंदर
तुम्हारी आँखें
तुम्हारे चेहरे की
मासूम परछाई
मुझमें धड़कती है प्रतिक्षण
टपकती है सूखे मन पर
बूँद-बूँद समाती
एकटुक निहारती
तुम्हारी आँखें
नींद में भी चौंकाती
रह-रह कर परिक्रमा करती
मन के खोह,अबूझ कंदराओं,
चोर तहखानों का
स्वप्न के गलियारे में
थामकर उंगली
अठखेलियाँ करती
देह पर उकेरती
बारीक कलाकृत्तियाँ
तुम्हारी आँखें
बर्फ की छुअन-सी
तन को सिहराती
कभी धूप कभी चाँदनी
कभी बादल के नाव पर उतारती
दिन के उगने से रात के ढलने तक
दिशाओं के हर कोने से
एकटुक ताकती
मोरपंखी बन सहलाती
तुम्हारी आँखें
#श्वेता सिन्हा