चुप रहूँ तो शायद दिल तेरा ख़ुशलिबास हो
दुआ हर लम्हा,खुश रहे तू न कभी उदास हो
तुम बिन जू-ए-बेकरार,हर सिम्त तलब तेरी
करार आता नहीं,कैसी अनबुझी मेरी प्यास हो
आजा के ओढ़ लूँ ,तुझको चाँदनी की तरह
चाहती हूँ रुह मेरी तुमसे,रु-ब-रु बेलिबास हो
होगी तुम्हें शिकायत लाख़ मेरे महबूब सनम
दश्त-ए-ज़िंदगी में,तुम ही तो सब्ज़ घास हो
पिरोया है तुझे मोतियों-सा साँसों के तार में
ख़्वाहिश है वक़्त-ए-आख़िर तुम मेरे पास हो
#श्वेता सिन्हा
ख़ुशलिबास-सुंदर परिधान
जू-ए-बेकरार-बैचेन नदी
सब्ज़ - हरा-भरा
दश्त-ए-ज़िंदगी- ज़िंदगी के रेगिस्तान में
दश्त-ए-ज़िंदगी- ज़िंदगी के रेगिस्तान में