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Friday, 3 May 2019

तुम


चुप रहूँ तो शायद दिल तेरा ख़ुशलिबास हो 
दुआ हर लम्हा,खुश रहे तू न कभी उदास हो

तुम बिन जू-ए-बेकरार,हर सिम्त तलब तेरी
करार आता नहीं,कैसी अनबुझी मेरी प्यास हो

आजा के ओढ़ लूँ ,तुझको चाँदनी की तरह 
चाहती हूँ रुह मेरी तुमसे,रु-ब-रु बेलिबास हो

होगी तुम्हें शिकायत लाख़ मेरे महबूब सनम
दश्त-ए-ज़िंदगी में,तुम ही तो सब्ज़ घास हो


पिरोया है तुझे मोतियों-सा साँसों के तार में
ख़्वाहिश है वक़्त-ए-आख़िर तुम मेरे पास हो

#श्वेता सिन्हा

ख़ुशलिबास-सुंदर परिधान
जू-ए-बेकरार-बैचेन नदी
सब्ज़ - हरा-भरा
दश्त-ए-ज़िंदगी- ज़िंदगी के रेगिस्तान में

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...