ज़िंदगी की उदासियों में
चुटकी भर रंग घोलें
अश्क में मुहब्बत मिला कर
थोड़ा-सा रुमानी हो लें
दर्द को तवज्ज़ो कितना दें
दामन रो-रो कर भीगो लें
चुभते लम्हों को दफ़न करके
बनावटी चेहरों पे कफ़न धरके
वफ़ा की बाहों में सुकूं से सो लें
थोड़ा-सा रुमानी हो लें
रेत पर बिखरे मिले ख़्वाब घरौंदें
राज़ समुंदर का लहरें बोले
वक्त की दर्या में ज़ज़्बात बहा के
सफ़हों पे लिखे अरमान मिटा के
मौज में मुहब्बत की बेपरवाह डोले
थोड़ा-सा रुमानी हो लें
किसी इनायत के इंतज़ार में
दर कब तलक खुला रखें
नहीं लकीरों में उन्हें भुला के
ख़्वाबों की तस्वीर सब जला के
उल्फ़त में अपने होश हम खो लें
थोड़ा-सा रुमानी हो लें
-श्वेता सिन्हा