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Monday 13 November 2017

किन धागों से सी लूँ बोलो

मैं कौन ख़ुशी जी लूँ बोलो।
किन अश्क़ो को पी लूँ बोलो।
बिखरी लम्हों की तुरपन को
किन धागों से सी लूँ बोलो।

पलपल हरपल इन श्वासों से
आहों का रिसता स्पंदन है,
भावों के उधड़े सीवन को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

हिय मुसकाना चाहे ही ना
झरे अधरों से कैसे ख़ुशी,
पपड़ी दुखती है ज़ख़्मों की,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

मैं मना-मनाकर हार गयी
तुम निर्मोही पाषाण हुये,
हिय वसन हुए है तार-तार,
किन धागों से सी लूँ बोलो

भर आये कंठ न गीत बने
जीवन फिर कैसे मीत बने,
टूटे सरगम की रागिनी को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

    श्वेता🍁

Wednesday 15 March 2017

टूटा ख्वाब

तेरी निगाहों के नूर से दिल मेरा मगरूर था
भरम टूटा तो जाना ये दो पल का सुरूर था

परिंदा दिल का तेरी ख्वाहिश में मचलता रहा
नादां न समझ पाया कभी चाँद बहुत दूर था

एक ख्वाब मासूम सा पलकों से गिरकर टूट गया
अश्कों ने बताया ये बस मेरे दिल का फितूर था

चाहकर भी न मुस्कुरा सके वो  दर्द इतना दे गये
जज़्बात हम सम्हाल पाते इतना भी न शऊर था

दिल की हर दुआ में बस उनकी खुशी की चाह की
इतनी शिद्दत से इबादत कर ली यही मेरा कुसूर था

     #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...