जलती धरा पर छनकती
पानी की बूँदें बुदबुदाने लगी,
आस से ताकती घनविहीन
आसमां को ,
पनीली पीली आँखें
अब हरी हो जाने लगी ,
बरखा से पहले उमस ,तपन
से बेहाल कण कण में
बारिश की कल्पना भर से ही
घुलने लगती थी सूखी जीभ पर
चम्मच भर शहद सी
स्वागत गीत गाते उल्लासित हृदय
दो चार दिन में सोंधी खुशबू
माटी की सूरत बदल गयी,
भुरभुरी होकर धँसती
फिसलन भरे किचकिच रास्तों में,
डबडबाने लगी है सीमेंट की दीवारें
पसीजने को आतुर है पत्थरीले छत,
खुद को बचाता घर अचानक
उफनते नदी के मुहाने पर आ गया हो
दरारों से भीतर आती
छलनी छतों से टपकती बूँदों को
कटोरे ,डेगची मगों में
भरने का असफल प्रयास करते
एक कोने में सिमटे
बुझे चूल्हे में भरते पानी को देखते
कल की चिंता से अधमरे
सोच रहे है चिंतित,
बरखा रानी और कितना सताओगी
पानी की बूँदें बुदबुदाने लगी,
आस से ताकती घनविहीन
आसमां को ,
पनीली पीली आँखें
अब हरी हो जाने लगी ,
बरखा से पहले उमस ,तपन
से बेहाल कण कण में
बारिश की कल्पना भर से ही
घुलने लगती थी सूखी जीभ पर
चम्मच भर शहद सी
स्वागत गीत गाते उल्लासित हृदय
दो चार दिन में सोंधी खुशबू
माटी की सूरत बदल गयी,
भुरभुरी होकर धँसती
फिसलन भरे किचकिच रास्तों में,
डबडबाने लगी है सीमेंट की दीवारें
पसीजने को आतुर है पत्थरीले छत,
खुद को बचाता घर अचानक
उफनते नदी के मुहाने पर आ गया हो
दरारों से भीतर आती
छलनी छतों से टपकती बूँदों को
कटोरे ,डेगची मगों में
भरने का असफल प्रयास करते
एक कोने में सिमटे
बुझे चूल्हे में भरते पानी को देखते
कल की चिंता से अधमरे
सोच रहे है चिंतित,
बरखा रानी और कितना सताओगी
त्रस्त दुखित हृदय पूछते है
हे, अतिथि तुम कब जाओगे??
#श्वेता🍁
हे, अतिथि तुम कब जाओगे??
#श्वेता🍁