रौद्र मुख ,भींची मुट्ठियाँ,
अंगार नेत्र,तनी भृकुटि
ललकार,जयकार,उद्धोष
उग्र भीड़ का
अमंगलकारी रोष।
खेमों में बँटे लोग
जिन्हें पता नहीं
लक्ष्य का छोर
अंधाधुंध,अंधानुकरण,अंधों को
क्या फ़र्क पड़ता है
लक्ष्य है कौन?
अंधी भीड़
रौंदती है सभ्यताओं को
पाँवों के रक्तरंजित धब्बे
लिख रहे हैं
चीत्कारों को अनसुना कर
क्रूरता का इतिहास।
आत्माविहीन भीड़ के
वीभत्स,बदबूदार सड़े हुये
देह को
धिक्कार रही है
मानवता।
©श्वेता सिन्हा
२०अप्रैल२०२०
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२०अप्रैल२०२०
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