बर्फीली ठंड,कुहरे से जर्जर,
ओदायी,
शीत की निष्ठुरता से उदास,
पल-पल सिहरती
आखिरी साँस लेती
पीली पात
मधुमास की प्रतीक्षा में,
बसंती हवा की पहली
पगलाई छुअन से तृप्त
शाख़ से लचककर
सहजता से
विलग हो जाती है।
ठूँठ पर
ठहरी नरम ओस की
अंतिम बूँद को
पीने के बाद
मतायी हवाओं के
स्नेहिल स्पर्श से
फूटती नाजुक मंजरियाँ,
वनवीथियों में भटकते
महुये की गंध से उन्मत
भँवरें फुसफुसाते हैं
मधुमास की बाट जोहती,
बाग के परिमल पुष्पों
के पराग में भीगी,
रस चूसती,
तितलियों के कानों में।
बादलों के गाँव में
होने लगी सुगबुगाहट
सूरज ने ली अंगड़ाई,
फगुनहट के नेह ताप से
आरक्त टेसु,
कूहू की पुकार से
व्याकुल,
सुकुमार सरसों की
फूटती कलियों पर मुग्ध
खिलखिलाई चटकीली धूप।
मधुमास शिराओं में
महसूस करती
दिगंबर प्रकृति
नरम,स्निग्ध,
मूँगिया ओढ़नी पहनकर
लजाती,इतराती है।
#श्वेता सिन्हा
१६/०२/२०२०
१६/०२/२०२०