मौन हृदय के आसमान पर
जब भावों के उड़ते पाखी,
चुगते एक-एक मोती मन का
फिर कूजते बनकर शब्द।
कहने को तो कुछ भी कह लो
न कहना जो दिल को दुखाय,
शब्द ही मान है,शब्द अपमान
चाँदनी,धूप और छाँव सरीखे शब्द।
न कथ्य, न गीत और हँसी निशब्द
रूंधे कंठ प्रिय को न कह पाये मीत,
पीकर हृदय की वेदना मन ही मन
झकझोर दे संकेत में बहते शब्द।
कहने वाले तो कह जाते है
रहते उलझे मन के धागों से,
कभी टीसते कभी मोहते
साथ न छोड़े बोले-अबोले शब्द।
फूल और काँटे,हृदय भी बाँटे
हीरक,मोती,मानिक,माटी,धूल,
कौन है सस्ता,कौन है मँहगा
मानुष की कीमत बतलाते शब्द।
#श्वेता सिन्हा
(अक्षय गौरव पत्रिका में प्रकाशित मेरी लिखी एक रचना)