Saturday, 12 January 2019

शब्द


मौन हृदय के आसमान पर
जब भावों के उड़ते पाखी,
चुगते एक-एक मोती मन का 
फिर कूजते बनकर शब्द।

कहने को तो कुछ भी कह लो
न कहना जो दिल को दुखाय,
शब्द ही मान है,शब्द अपमान
चाँदनी,धूप और छाँव सरीखे शब्द।

न कथ्य, न गीत और हँसी निशब्द
रूंधे कंठ प्रिय को न कह पाये मीत,
पीकर हृदय की वेदना मन ही मन 
झकझोर दे संकेत में बहते शब्द।

कहने वाले तो कह जाते है 
रहते उलझे मन के धागों से,
कभी टीसते कभी मोहते 
साथ न छोड़े बोले-अबोले शब्द।

फूल और काँटे,हृदय भी बाँटे
हीरक,मोती,मानिक,माटी,धूल,
कौन है सस्ता,कौन है मँहगा
मानुष की कीमत बतलाते शब्द।

    #श्वेता सिन्हा
    (अक्षय गौरव पत्रिका में प्रकाशित मेरी लिखी एक रचना)



14 comments:

  1. शब्दों के प्रभाव का प्रभावशाली अंकन । अपरम्पार हैं इनकी महिमा ।

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    1. आपकी त्वरित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से बहुत आभारी हूँ मीना जी।सस्नेह शुक्रिया बहुत सारा।

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  2. Very beautiful words, Imagine the imaginative imagery of the imagination, the beautiful scenery of the spectacular picture depicting expression. Great. Waah waah.

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    1. Thanku thanku thanku so much chandra...Ur all apprication and support are very special.
      Tthanks.

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  3. श्वेता जी शब्दों की महिमा का क्या सुंदर गुणगान किया आपने ....बहुत खूब ।

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  4. शब्दश: सत्य महिमा - शब्दों का, शब्दों के लिए और सुंदर शब्दों द्वारा।

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  5. रूंधे कंठ प्रिय को न कह पाये मीत,

    वाह प्रिय को मीत भी न कह पाये क्या खूब विवशता हैं।शानदार लेखन।
    प्रकाशन के लिये बहुत बहुत बधाई।

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  6. सुन्दर रचना श्वेता जी
    सादर

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  7. वाहह..शब्दों की महीमा अपरम्पार..
    सुंदर लेखन..

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  8. कौन है सस्ता,कौन है मँहगा
    मानुष की कीमत बतलाते शब्द,बहुत खूब.... स्वेता जी

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  9. शब्द ....
    चुप होते हैं ... मौन होते हैं ... बे आवाज़ होते हैं ...
    पर कितना प्रभाव छोड़ जाते हैं ... दूर तक भेद जाते हैं ... खुश कर जाते हैं दर्द तो सुकून दे जाते हैं ... निराले शब्द ...
    लाजवाब बाँधा है शब्दों में शब्द को ...

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  10. न कथ्य, न गीत और हँसी निशब्द
    रूंधे कंठ प्रिय को न कह पाये मीत,
    पीकर हृदय की वेदना मन ही मन
    झकझोर दे संकेत में बहते शब्द...
    बेहतरीन लेखन हेतु असीम शुभकामनाएं आदरणीय श्वेता जी।

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  11. वाह श्वेता लाजवाब बहुत ही सुंदर आंकलन मौन का और शब्द का।
    मौन बेजुबान कितना बोलता है
    कभी जहर कभी रस तोलता है।
    अप्रतिम।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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