रिमझिम-रिमझिम बरसी चाँदनी,
तन-मन,रून-झुन, बजे रागिनी।
पटल नील नभ श्वेत नीलोफर,
किरण जड़ित है शारद हासिनी।
परिमल श्यामल कुंतल बादल,
मध्य विहसे मृदु केसरी चंदा।
रजत तड़ाग से झरते मोती,
छल-छल छलके सुरभित नंदा
जमना तट कंदब वट झुरमुट,
नेह बरसे मधु अंजुरी भर-भर।
बिसराये सुध केशव-राधा,
रचे रास मधुकुंजन गिरधर।
बोझिल नयन नभ जग स्वप्निल,
एकटुक ताके निमग्न हो चातक।
चूमे सरित,तड़ाग,झील नीर लब,
ओस बन अटके पुष्प अधर तक।
रजत थाल जाल दृग मोहित,
दमदम दमके नभ भव करतल
पूरण कामना हिय चित इच्छित,
अमित सुधा रस अवनि आँचल।
#श्वेता सिन्हा