हाय! हम क्यों नहीं सोच रहे?
अपने भविष्य की सीढ़ियों को
अपने आने वाली पीढियों को
कैसी धरोहर हम सौंप रहे?
धर्म और शिक्षा में राजनीति
संस्कार संक्रमण रोप रहे?
भाषाओं को पहनाकर धर्म
अस्पृश्य बना रहे हो क्यों?
ढोंगी मानवता के रक्षक
हृदयों को बाँट रहे हो क्यों?
समाज के स्वार्थी ठेकेदारों
क्यों विषधर खंजर घोप रहे?
आधुनिकता का भोंपू ताने
बेतुके तमाशे बेमतलब का शोर
बदलाव का क्यों भरते हैं दंभ
बाहर आ जाते मन के चोर
अपने आँगन के पौधों को
क्यों काँटों से हम तोप रहे?
मुस्तफ़ा खाँ 'मद्दाम' का
समृद्ध उर्दू-हिंदी शब्दकोश
क्यों न हम रोक सके थे...?
'बुल्के' का रामकथा पर शोध
भाषा कल-कल बहता नीर
सरहदों में बाँध क्यों रोक रहे?
मत बनाओ नस्लों को
साम्प्रदायिकता का शिकार
संकीर्ण मनोवृत्तियों से पनपी
'कूपमंडूकता' है एक विकार
संस्कृति के नाम पर कैसी
रुग्ण मानसिकता थोप रहे?
जाने हम क्यों नहीं सोच रहे?
#श्वेता सिन्हा