देह की
परिधियों तक
सीमित कर
स्त्री की
परिभाषा
है नारेबाजी
समानता की।
दस हो या पचास
कोख का सृजन
उसी रजस्वला काल
से संभव
तुम पवित्र हो
जन्म लेकर
जन्मदात्री
अपवित्र कैसे?
रुढ़ियों को
मान देकर
अपमान मातृत्व का
मान्यता की आड़ में
अहं तुष्टि या
सृष्टि के
शुचि कृति का
तमगा पुरुष को
देव दृष्टि
सृष्टि के
समस्त जीव पर
समान,
फिर...
स्त्री पुरुष में भेद?
देवत्व को
परिभाषित करते
प्रतिनिधियो;
देवता का
सही अर्थ क्या?
देह के बंदीगृह से
स्वतंत्र होने को
छटपटाती आत्मा
स्त्री-पुरुष के भेद
मिटाकर ही
पा सकेगी
ब्रह्म और जीव
की सही परिभाषा।
-श्वेता सिन्हा