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Monday, 18 May 2020

साँझ


पेड़ की फुनगी में
दिनभर लुका-छिपी 
खेलकर थका,
डालियों से
हौले से फिसलकर
तने की गोद में
लेटते ही
सो जाता है,
उनींदा,अलसाया 
सूरज।

पीपल की 
पत्तियाँ फटकती हैं
दिनभर धूप,
साँझ को समेटकर 
रख देती है,
तने की आड़ में
औंधा।

दिनभर
फुदकती है
चिरैय्या
गुलाबी किरणें 
चोंच में दबाये
साँझ की आहट पा
छिपा देती हैं,
अपने घोंसलों में,
तिनकों के
रहस्यमयी
संसार में।

#श्वेता सिन्हा
१८मार्च२०२०

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