नक़्श आँगन के अजनबी,कहें सदायें सुन
हब्स रेज़ा-रेज़ा पसरा,सीली हैं हवायें सुन
धड़कन-फड़कन,आहट,आहें दीद-ए-नमनाक
दिल के अफ़सानें में, मिलती हैं यही सज़ाएं सुन
सुन मुझ पे न मरक़ूज कर नज़रें अपनी
ख़ाली हैं एहसास दिल की साएं-साएं सुन
ना छेड़ पत्थरों में कैद लाल मक़बरे को
फिर जाग उठेंगीं, सोयी हुईं बलायें सुन
मैं अपनी पलकों से चुन लूँ सारे ग़म तेरे
तू जीस्त-ए-सफ़र में, मेरी पाक दुआएँ सुन
#श्वेता सिन्हा
नक़्श-चिह्न
हब्स -घुटन
रेज़ा-रेज़ा-कण-कण
दीद-ए-नमनाक-गीले नेत्
मरक़ूज-केंद्रित
जीस्त-ज़िंदगी