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Saturday 10 March 2018

हथेली भर प्रेम

मौन के इर्द-गिर्द 
मन की परिक्रमा
अनुत्तरित प्रश्नों के रेत से
छिल जाते है शब्द

डोलते दर्पण में
अस्पष्ट प्रतिबिंब
पुतलियाँ सिंकोड़ कर भी
मनचाही छवि नहीं उपलब्ध

मौन ध्वनियों से गूँजित
प्रतिध्वनियों से चुनकर
तथ्य और तर्क से परे
जवाब का चेहरा निः शब्द

सवाल के चर अचर 
संख्याओं में उलझा
बिना हल समीकरण 
प्रीत का ऐसा ही प्रारब्ध

मौन के अँगूठे से दबकर
छटपटाते मन को स्वीकार
मिला हथेली भर प्रेम 
समय की विरलता में जो लब्ध

   #श्वेता सिन्हा


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