उदास रात के दामन मेंं
बिसूरती चाँदनी
खामोश मंजर पसरा है
मातमी सन्नाटा
ठंडी छत पर सर्द किरणें
बर्फीला एहसास
कुहासे जैसे घने बादलों का
काफ़िला कोई
नम नीरवता पाँव पसारती
पल-पल गहराती
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
चुपचाप अटल सा
कंपकपाते बर्फ़ के मानिंंद
सूनी हथेलियों को
अपने तन के इर्द-गिर्द लपेटे
ख़ुद से बेखबर
मौसम की बेरूख़ी को सहते
यादों को सीने से लगाये
अपनी ख़ता पूछती है नम पलकोंं से
बेवज़ह जो मिली
उस सज़ा की वजह पूछती है
एक रूह तड़पती-सी
यादोंं को मिटाने का रास्ता पूछती है।
#श्वेता