उदास रात के दामन मेंं
बिसूरती चाँदनी
खामोश मंजर पसरा है
मातमी सन्नाटा
ठंडी छत पर सर्द किरणें
बर्फीला एहसास
कुहासे जैसे घने बादलों का
काफ़िला कोई
नम नीरवता पाँव पसारती
पल-पल गहराती
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
चुपचाप अटल सा
कंपकपाते बर्फ़ के मानिंंद
सूनी हथेलियों को
अपने तन के इर्द-गिर्द लपेटे
ख़ुद से बेखबर
मौसम की बेरूख़ी को सहते
यादों को सीने से लगाये
अपनी ख़ता पूछती है नम पलकोंं से
बेवज़ह जो मिली
उस सज़ा की वजह पूछती है
एक रूह तड़पती-सी
यादोंं को मिटाने का रास्ता पूछती है।
#श्वेता
बेहतरीन रचना सखी मन मोह गई पंक्ति
ReplyDeleteबेवज़ह जो मिली
उस सज़ा की वजह पूछती है
एक रूह तड़पती-सी
यादोंं को मिटाने का रास्ता पूछती है।
ReplyDeleteयादों को सीने से लगाये
अपनी ख़ता पूछती है नम पलकोंं से
बेवज़ह जो मिली
उस सज़ा की वजह पूछती है ....
फिर भी मासूम चाँद को निकलना होगा, कर्मपथ पर बढ़ना होगा। हर ताप सह कर भी सृष्टि का चक्र चलता रहे, अमृत रस बरसाना होगा। किसी एक की यादों की सीने में दफन किये औरों के लिये जीना होगा...
बेहद सुंदर और भावपूर्ण रचना है श्वेता जी, आपकी लेखनी को नमन
ठंडी छत पर सर्द किरणें.... वाह!!!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर श्वेता जी. लगता है कि आप शिला बन चुकी किसी अभिशप्त अहल्या का एकाकीपन और उसकी व्यथा का चित्रण कर रही हैं.
ReplyDeleteव्यथित मन की अबूझ सी आकांक्षा का बहुत अलंकृत वर्णन
ReplyDeleteसुदृढ़ काव्य पक्ष चमत्कृत करती रचना प्रिय श्वेता आपकी।
कहीं उदासियों के गहरे कुहासे में घिरी । अप्रतिम।
चाँद को भी अपना अहसास आपना वजूद ढूँढना होता है कभी ...
ReplyDeleteगहरी रचना ...
बहुत ही सुन्दर रचना श्वेता जी बेवजह मिली सजा की वजह वाह
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteअद्भुत बेहद सुंदर शब्दों से बेहद खूबसूरत भाव उकेरे हैं आपने रचना हृदय को स्पर्श कर रही बहुत सारी शुभकामनाएं श्वेता जी
ReplyDeleteशब्दों और भावों को पिरोती बहुत सुंंदर रचना..
ReplyDeleteयादों को सीने से लगाये
ReplyDeleteअपनी ख़ता पूछती है नम पलकोंं से
बेवज़ह जो मिली
उस सज़ा की वजह पूछती है
अद्भुत शब्दविन्यास....बहुत लाजवाब...
वाह!!!
बहुत लाजवाब सुंदर शब्दों से बेहद खूबसूरत भाव उकेरे हैं
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