पिघल रही सर्दियाँ
झरते वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश
सुंदरता बिखरी चहुँओर
चटख रंग उतरे घर आँगन
उमंग की चली फागुनी बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश
सिंदूरी रंग साँझ के रंग
मल गये नरम कपोल
तन ओढ़े रेशमी चुनर
केसरी फूल पलाश
आमों की डाली पे कूके
कोयलिया विरहा राग
अकुलाहट भरे पीर उठे
मन में बिखरने लगे पलाश
गंधहीन पुष्पों की बहारें
मृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन बन गया फूल पलाश
#श्वेता🍁
झरते वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश
सुंदरता बिखरी चहुँओर
चटख रंग उतरे घर आँगन
उमंग की चली फागुनी बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश
सिंदूरी रंग साँझ के रंग
मल गये नरम कपोल
तन ओढ़े रेशमी चुनर
केसरी फूल पलाश
आमों की डाली पे कूके
कोयलिया विरहा राग
अकुलाहट भरे पीर उठे
मन में बिखरने लगे पलाश
गंधहीन पुष्पों की बहारें
मृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन बन गया फूल पलाश
#श्वेता🍁
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteसादर
कालिदास का वसंत-वर्णन पढ़ पाना हमारे बस में नहीं है पर ब्रजभाषा में देव, सेनापति और पद्माकर का वसंत-वर्णन पढ़ा था, निराला को भी पढ़ा और अब श्वेता तुमको भी. आनंद व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द कम पड़ रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पलाश सी खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
आपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
गंधहीन पुष्पों की बहारें
ReplyDeleteमृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन बन गया फूल पलाश
अत्यंत सुन्दर शब्द चित्र । इस कृति की जितनी सराहना करूँ कम होगी । अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति । सस्नेह…,
सुंदर सृजन
ReplyDeleteआदरणीया मैम, सादर चरण स्पर्श। आपकी कविताओं को पढ़ना सदा ही सुखद अनुभव रहा है। माँ प्रकृति को समर्पित आपकी हर रचना मन को आनंद और शुभता की अनुभूति से भर देती है। यह रचना भी वैसी ही है, मन में पलाश खिला देती है। वसंत ऋतु में खिलते फूलों की सुंदरता लिए बहुत प्यारी सी कविता। पुनः प्रणाम।
ReplyDeleteअहा! बहुत ही प्यारी रचना श्वेता लगता है मन के प्लान खिल उठे।
ReplyDeleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर रचना प्रिय श्वेता।प्रकृति जब फूलों से शृंगार करती है तो पलाश की उपस्थिति अलग ही नज़र आती है।उस पर तुम्हारी कलम का जादू।माशाल्लाह! आफरीन!आफरीन 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना प्रिय बहन
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteगंधहीन पुष्पों की बहारें
ReplyDeleteमृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन बन गया फूल पलाश
पलाश के केसरी रंग बिखर गये मन आँगन में...
अत्यंत सुंदर
वाह!!!
आमों की डाली पे कूके
ReplyDeleteकोयलिया विरहा राग
अकुलाहट भरे पीर उठे
मन में बिखरने लगे पलाश
... बसंत से पहले ही बसंत के आमद का स्वागत करती सुंदर रचना ।बधाई श्वेता जी ।