पिघल रही सर्दियाँ
झर रहे वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश
सुंदरता बिखरी फाग की
चटख रंग उतरे घर आँगन
लहराई चली नशीली बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश
सिंदूरी रंग साँझ की
मल गये नरम कपोल
तन सजे रेशमी चुनर-सी
केसरी फूल पलाश
आमों की डाली पे गाये
कोयलिया विरहा राग
अकुलाहट हिय पीर उठे
हृदय फूटे फूल पलाश
गंधहीन पुष्पों की बहारें
मृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन छलने लगे पलाश
-- श्वेता सिन्हा