पिघल रही सर्दियाँ
झर रहे वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश
सुंदरता बिखरी फाग की
चटख रंग उतरे घर आँगन
लहराई चली नशीली बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश
सिंदूरी रंग साँझ की
मल गये नरम कपोल
तन सजे रेशमी चुनर-सी
केसरी फूल पलाश
आमों की डाली पे गाये
कोयलिया विरहा राग
अकुलाहट हिय पीर उठे
हृदय फूटे फूल पलाश
गंधहीन पुष्पों की बहारें
मृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन छलने लगे पलाश
-- श्वेता सिन्हा
पिघल रही सर्दियाँ
ReplyDeleteझर रहे वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश
बहुत सुंदर रचना
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जी,बहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteआपके निरंतर प्रोत्साहन के लिए हृदयतल से शुक्रिया।
Bahut bahut khubsurat sweta ji
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना....
ReplyDeleteखूबसूरत वर्णन पलाश का ।
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ReplyDeleteगंधहीन पुष्पों की बहारें
मृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन छलने लगे पलाश-----
अति सुंदर और मर्मस्पर्शी रचना | पलाश के बहाने बहुत ही उत्तम सृजन |
गंधहीन पुष्पों की बहारें
ReplyDeleteमृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन छलने लगे पलाश
बहुत ही शानदार...
लाजवाब....
वाह!!!
वाह!!! बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteसूंदर भाव और शब्द चयन हमेशा की तरह।
शानदार रचना की बहुत बहुत बधाई
चटख रंग उतरे घर आँगन
ReplyDeleteलहराई चली नशीली बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश
बहुत खूब...., श्वेता जी मन मोह लिया आपके पलाश के फूलों ने.
वाह!!!
ReplyDeleteगंधहीन पुष्पों की बहारें
ReplyDeleteमृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन छलने लगे पलाश
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति, स्वेता!
चित्रमय ऋतु वर्णन ।बहुत सुंदर रचना श्वेता जी ।
ReplyDeleteअत्यंत ही सुंदर रचना है
ReplyDeleteपलाश के फूल मन मयूर को हिला देते हैं फागुन के आगमन और सर्द ऋतु के गमन की बख़ूबी लिखा है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
नए आयाम लेकर चला हूँ मै फिर से एक रात लेकर चला हूँ।।
ReplyDeleteआपकी कला ऐसे ही बढ़ती रहे।।।
दावानल सा भ्रमित होता
ReplyDeleteमन छलने लगे पलाश
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति, स्वेता!
बेहतरीन रचना श्वेता जी 👌
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