माटी के कठपुतले हम सब,जीवन एक खिलौना है।
हँसकर जी ललचाए, कभी यह काँटो भरा बिछौना है।
सोच के डोर के उलझे धागे सोचों का ही सब रोना है।
सुख दुख के पहिये पे घूमे,कभी माटी तो कभी सोना है।
मिल जाये इंद्रासन फिर भी,असंतोष में पलके भिगोना है।
मानुष फितरत कभी न बदले,बस खोने का ही रोना है।
सिर पटको या तन को धुन लो,होगा वही जो होना है।
चलता साँसों का ताना बाना, तब तक ये खेल तो होना है।
#श्वेता🍁
हँसकर जी ललचाए, कभी यह काँटो भरा बिछौना है।
सोच के डोर के उलझे धागे सोचों का ही सब रोना है।
सुख दुख के पहिये पे घूमे,कभी माटी तो कभी सोना है।
मिल जाये इंद्रासन फिर भी,असंतोष में पलके भिगोना है।
मानुष फितरत कभी न बदले,बस खोने का ही रोना है।
सिर पटको या तन को धुन लो,होगा वही जो होना है।
चलता साँसों का ताना बाना, तब तक ये खेल तो होना है।
#श्वेता🍁