ब्रह्मांड में धरा का जन्म
धरा पर जीवन का अंकुरण
प्रकृति के अनुपम उपहारों का
क्यूँ मान नहीं कर पाते हैं?
जीवन को प्रारब्ध से जोड़
नियति को सत्य मानकर
आड़ी-तिरछी रेखाओं में उलझे
क्यों कर्म से पीछा छुड़ाते है?
माया-मोह में गूँथ भाव मन
दुख-सुख का अनुभव करते
मन की पीड़ा में उलझकर
हम स्वयं का अस्तित्व मिटाते है?
जनम का उद्देश्य सोचती
है क्या मेरे होने न होने से अंतर
मोह क्यों इतना जीवन से
क्यूँ भौतिक सुख में भरमाते हैं?
जीवन-मरण है सत्य शाश्वत
नश्वर जग,काया-माया छलना
जीव सूक्ष्म कठपुतली ब्रह्म के
हम जाने क्यूँ जीते जाते है?
व्यथा जीवन की भुलाती
गंध मृत्यु की बड़ी लुभाती
जीवन से अनंत की यात्रा में
चिर-निद्रा में पीड़ा से मुक्ति पाते है।
-श्वेता सिन्हा