तुम्हारे जन्म के पहले से
जब तुम कोख में थी मेरे
तबसे नन्ही-नन्ही
अनगिनत रंगीन शीशियाँ
सहेज रही हूँ
तुम्हारी स्मृतियों के
इत्र में भीगीं।
प्रत्येक वर्ष
तुम्हारे जन्मदिन पर
दिनभर की भाग-दौड़ से
थमने के बाद चुपचाप
अंतरिक्ष की स्याह स्लेट पर
तुम्हारे भविष्य की तस्वीर
उकेरती हूँ
नक्षत्रों से बातें करती हूँँ
नम आँखों में तुम्हारे सुखों और
ख़ुशियों की कामना लिए
आँचल फैलाकर
दुआएँ माँगती हूँ।
और अब...
इस उम्र में
जब देह और मन के अंतर्द्वन्द्व
समझने का प्रयास करती
तुम्हारे मन की कोमल चिड़िया
अपनी नाज़ुक चोंच से
नभ का सबसे चमकीला तारा
उठाना चाहती है।
अपने भीतर बसाये
कल्पनाओं की गुलाबी दुनिया में
अपना नाम टाँकना चाहती है।
मैं धैर्य और साहस बनकर
तुम्हारे स्वप्नों का
एक सिरा थामकर अदृश्य रूप से
तुम्हारे साथ-साथ चलना चाहती हूँ।
सुनो बिटुआ....
तुम इंद्रधनुष के
इकतारे पर अपने जीवन का
संगीत लिखो,
जब भी थक जाओ
जीवन की जटिलताओं से
मेरे आशीर्वाद को
ओढ़ कर,
सुस्ता लेना मेरी प्रार्थनाओं के
बिछावन पर...
मैं रहूँ न रहूँ
पर एक मैं ही तो हूँ
निःस्वार्थ, निष्काम
तुम्हारी आत्मा की परछाई,
तुम्हारी स्मृतियों की खिड़की पर
आजीवन हर मौसम में
खड़ी मिलूँगी
तुम्हारे हृदय में पवित्र
ममत्व का भाव बनकर।
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-श्वेता
१८ जुलाई २०२५