Friday 12 January 2018

तेरे नेह में

तुमसे मिलकर कौन सी बातें करनी थी मैं भूल गयी
शब्द चाँदनी बनके झर गये हृदय मालिनी फूल गयी

मोहनी फेरी कौन सी तुमने डोर न जाने कैसा बाँधा
तेरे सम्मोहन के मोह में सुध-बुध जग भी भूल गयी

मन उलझे मन सागर में लहरों ने लाँघें तटबंधों को
सारी उमर का जप-तप नियम पल-दो-पल में भूल गयी

बूँदे बरसी अमृत घुलकर संगीत शिला से फूट पड़े
कल-कल बहती रसधारा में रिसते घावों को भूल गयी

तुम साथ रहो तेरा साथ रहे बस इतना ही चाहूँ तुमसे
मन मंदिर के तुम ईश मेरे तेरे नेह में ईश को भूल गयी

श्वेता🍁

Tuesday 9 January 2018

अंकुराई धरा


धूप की उंगलियों ने 
छू लिया अलसाया तन 
सर्द हवाओं की शरारतों से
तितली-सा फुदका मन

तन्वंगी कनक के बाणों से
कट गये कुहरीले पाश
बिखरी गंध शिराओं में
मधुवन में फैला मधुमास

मन मालिन्य धुल गया
झर-झर झरती निर्झरी 
कस्तूरी-सा मन भरमाये
कंटीली बबूल छवि रसभरी

वनपंखी चीं-चीं बतियाये
लहरों पर गिरी चाँदी हार
अंबर के गुलाबी देह से फूट
अंकुराई धरा, जागा है संसार

       #श्वेता🍁

Friday 5 January 2018

आज फिर.....

आज फिर किरिचियाँ ज़िंदगी की
तन्हाई में भर गयीं।
कुछ अधूरी ख़्वाहिशों की छुअन से
चाहतें सिहर गयीं।।

लाख़ कोशिशों के बावजूद
तुम ख़्यालों से नहीं जाते हो
थक गयी हूँ मैं
तुम्हें झटककर ज़ेहन से..... 
बहुत ज़िद्दी हैं ख़्याल तुम्हारे
बार-बार आकर बैठ जाते हैं
मन की उसी डाल पर
जहाँ से तुम ही तुम 
नज़र आते हो।

जितना भी कह लूँ
तुम्हारे होने न होने से
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है
पर जाने क्यों..... ? 
तुम्हारी एक नज़र को
दिल बहुत तड़पता है।
तुम्हारी बातें टाँक रखी हैं
ज़ेहन की पगडंडियों में
अनायास ही तन्हाई में
मन उन्हीं राहों पर चलता है।


    #श्वेता🍁

Wednesday 3 January 2018

तुम्हारा ख़्याल


गहराते रात के साये में
सुबह से दौड़ता-भागता शहर
थककर सुस्त क़दमों से चलने लगा
जलती-बुझती तेज़ -फीकी
दूधिया-पीली रोशनी के
जगमगाते-टिमटिमाते
असंख्य सितारे
ऊँची अट्टालिकाओं से झाँकते 
निर्निमेष ताकते हैं राहों को
सड़कों पर दौड़ती मशीनी
 ज़िंन्दगी
लौटते अपने घरौंदे को
बोझिलता का लबादा पहने
सर्द रात की हल्की धुंध में
कंपकंपाती हथेलियों को
रगड़ते रह-रहकर 
मोड़कर कुहनियों को
मुट्ठी बाँधते जैकेट में 
गरमाहट ढूँढ़ते
बस की खिड़की से बाहर
स्याह आसमां की
कहकशाँ निहारते
पूरे चाँद को जब देखता हूँ
तुम्हारा ख़्याल अक्सर
हावी हो जाता है
तुम्हारी बातें 
घुलने लगती हैं 
संदली ख़ुशबू-सी
सिहरती हवाओं 
के साथ मिलकर 
गुनगुनाने लगती हैं
जानता हूँ मैं
तुम भी ठंड़ी छत की
नम मुँडेरों पर खड़ी
उनींदी आँखों से
देखती होओगी चाँद को
एक चाँद ही तो है
जिसे तुम्हारी आँखें छूकर
भेजती हैं एहसास 
जो लिपट जाते हैं मुझसे
आकर बेधड़क,
और छोड़ जाते हैं  
गहरे निशां 
तुम्हारी रेशमी यादों के ।


    #श्वेता🍁

Sunday 31 December 2017

नववर्ष

रात की बोझिल उदासी को
किरणों की मुस्कान से खोलता
शीत का दुशाला ओढ़े
क्षितिज के झरोखे से झाँकता
बादलों के पंख पर उड़कर
हौले-हौले पर्वत शिखाओं को
चूमकर पाँव फैला रहा है
हवाओं में जाफरानी खुशबू घोलकर
पेड़ों,फूलों पर तितली सा मँडरा रहा है
पोखर, नदी,झील के आँचल में
चिड़ियों सा चहचहा रहा है
मंजुल प्रकाश भर भर कर
गाँव, शहर,बस्तियों में
पंखुड़ियों सा बिखर जा रहा है
वसुधा के प्रांगण में
करने को नवीन परिवर्त्तन
जन-जन की आँखों में
मख़मली उम्मीदों के 
बंदनवार सजाकर
आत्ममुग्ध स्वच्छ शुचि उद्गम् ले
नववर्ष मनभावन 
आशाओं की किरणों का
हाथ थामकर स्मित मुस्कुराता
चला आ रहा है।

        #श्वेता🍁

Friday 29 December 2017

नन्ही ख़्वाहिश


एक नन्ही ख़्वाहिश 
चाँदनी को अंजुरी में भरने की,
पिघलकर उंगलियों से टपकती
अंधेरे में ग़ुम होती 
चाँदनी देखकर
उदास रात के दामन में
पसरा है मातमी सन्नाटा 
ठंड़ी छत को छूकर सर्द किरणें
जगाती है बर्फीला एहसास
कुहासे जैसे घने बादलों का
काफिला आकर 
ठहरा है गलियों में
पीली रोशनी में
नम नीरवता पाँव पसारती
पल-पल गहराती
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
तन्हा रातभर भटकेगा 
कंपकपाती नरम रेशमी दुशाला 
 तन पर लिपटाये
मौसम की बेरूखी से सहमे
शबनमी सितारे उतरे हैं
फूलों के गालों पर
भींगी रात की भरी पलकें
सोचती है 
क्यूँ न बंद कर पायी
आँखों के पिटारे में
कतरनें चाँदनी की, 
अधूरी ख़्वाहिशें 
अक्सर बिखरकर 
रात के दामन में 
यही सवाल पूछती हैं।

Tuesday 26 December 2017

बदलते साल में....



सोचते  हैं 
इस नये साल में 
क्या बदल जाएगा....?
तारीख़  के साथ 
किसका हाल बदल जाएगा।

सूरज,चंदा,तारे 
और फूल
नियत समय निखरेंगे, 
वही दिन होगा 
असंभव है रात्रि
तम का जाल
 बदल जाएगा।

मथ कर विचार 
तराश लीजिए
मन की काया,
गुज़रते वक़्त  में 
तन का हाल बदल जाएगा।

कुंठित मानसिकता में 
लिपटे इस समाज में,
कौन कहता है
नारी के प्रति
मनभाव बदल जाएगा...?

लौटकर पक्षी  को 
अपने नीड़ में
आना होगा,
अपना मानकर बैठा है   
कैसे वो डाल बदल जाएगा।

कुछ नहीं  बदलता 
समय की धारा में 
दिवस के सिवा,
अपने कर्मों  में 
विश्वास रखिये
इतिहास बदल जाएगा।

नव वर्ष के 
ख़ुशियों के पर्व पर
है नवीन संकल्प 
नवप्रभात का,
ख़ुशियाँ बाँट लें
दिल कहता है
ग़म का जाल बदल जाएगा। 

#श्वेता🍁

Saturday 23 December 2017

लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे..


अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे।
दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।।

पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम।
उम्रे-रवाँ के  ख़्वाब  सारे  डोलने  लगे।।

ख़ुश देखकर मुझे वो परेश़ान हो  गये।
फिर यूँ हुआ हर लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे।।

मैंने ज़रा-सी खोल दी  मुट्ठी भरी  हुई।
तश्ते-फ़लक पर  तारे रंग घोलने लगे।।

सिसकियाँ सुनता नहीं सूना हुआ शहर।
हँस के जो बात की तो लोग बोलने लगे।।

          #श्वेता🍁

शिग़ाफ़े-लब=होंठ की दरार
उम्रे-रवाँ=बहती उम्र
तश्ते-फ़लक=आसमां की तश्तरी

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...