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Tuesday, 19 January 2021
चिड़िया
धरती की गहराई को
तरू की हस्त रेखाओं की
कानन की सीली गंध लिए
सृष्टि में व्याप्त मौन अभ्यर्थना
द्रष्टा और दृश्य की परिभाषा
Friday, 29 December 2017
नन्ही ख़्वाहिश
एक नन्ही ख़्वाहिश
चाँदनी को अंजुरी में भरने की,
पिघलकर उंगलियों से टपकती
अंधेरे में ग़ुम होती
चाँदनी देखकर
चाँदनी देखकर
उदास रात के दामन में
पसरा है मातमी सन्नाटा
ठंड़ी छत को छूकर सर्द किरणें
जगाती है बर्फीला एहसास
कुहासे जैसे घने बादलों का
काफिला आकर
ठहरा है गलियों में
पीली रोशनी में
नम नीरवता पाँव पसारती
पल-पल गहराती
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
तन्हा रातभर भटकेगा
कंपकपाती नरम रेशमी दुशाला
तन पर लिपटाये
मौसम की बेरूखी से सहमे
शबनमी सितारे उतरे हैं
फूलों के गालों पर
भींगी रात की भरी पलकें
सोचती है
सोचती है
क्यूँ न बंद कर पायी
आँखों के पिटारे में
कतरनें चाँदनी की,
अधूरी ख़्वाहिशें
अक्सर बिखरकर
रात के दामन में
यही सवाल पूछती हैं।
रात के दामन में
यही सवाल पूछती हैं।
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