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Tuesday 19 January 2021

चिड़िया

धरती की गहराई को
मौसम की चतुराई को
भांप लेती है नन्ही चिड़िया
आगत की परछाई को।


तरू की हस्त रेखाओं की
सरिता की रेतील बाहों की
बाँच लेती है पाती चिड़िया
बादल और हवाओं की।


कानन की सीली गंध लिए
तितली-सी स्वप्निल पंख लिए
नाप लेती है दुनिया चिड़िया
मिसरी कलरव गुलकंद  लिए।


सृष्टि में व्याप्त मौन अभ्यर्थना
चोंच से निसृत पवित्र प्रार्थना
चुग लेती है तम कण चिड़िया
गूँथ रश्मि की सजल अल्पना।


द्रष्टा और दृश्य की परिभाषा
जन्म-मरण अहर्निश प्रत्याशा 
सोख लेती है अतृप्ति चिड़़िया
बूझो अगर तुम उसकी भाषा।



#श्वेता सिन्हा
१९ जनवरी २०२१


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...