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Friday, 5 January 2018

आज फिर.....

आज फिर किरिचियाँ ज़िंदगी की
तन्हाई में भर गयीं।
कुछ अधूरी ख़्वाहिशों की छुअन से
चाहतें सिहर गयीं।।

लाख़ कोशिशों के बावजूद
तुम ख़्यालों से नहीं जाते हो
थक गयी हूँ मैं
तुम्हें झटककर ज़ेहन से..... 
बहुत ज़िद्दी हैं ख़्याल तुम्हारे
बार-बार आकर बैठ जाते हैं
मन की उसी डाल पर
जहाँ से तुम ही तुम 
नज़र आते हो।

जितना भी कह लूँ
तुम्हारे होने न होने से
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है
पर जाने क्यों..... ? 
तुम्हारी एक नज़र को
दिल बहुत तड़पता है।
तुम्हारी बातें टाँक रखी हैं
ज़ेहन की पगडंडियों में
अनायास ही तन्हाई में
मन उन्हीं राहों पर चलता है।


    #श्वेता🍁

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