तुमसे मिलकर कौन सी बातें करनी थी मैं भूल गयी
शब्द चाँदनी बनके झर गये हृदय मालिनी फूल गयी
मोहनी फेरी कौन सी तुमने डोर न जाने कैसा बाँधा
तेरे सम्मोहन के मोह में सुध-बुध जग भी भूल गयी
मन उलझे मन सागर में लहरों ने लाँघें तटबंधों को
सारी उमर का जप-तप नियम पल-दो-पल में भूल गयी
बूँदे बरसी अमृत घुलकर संगीत शिला से फूट पड़े
कल-कल बहती रसधारा में रिसते घावों को भूल गयी
तुम साथ रहो तेरा साथ रहे बस इतना ही चाहूँ तुमसे
मन मंदिर के तुम ईश मेरे तेरे नेह में ईश को भूल गयी
श्वेता🍁
बहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteजी,अति आभार आपका विश्वमोहन जी।तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteसमर्पण और निश्चछलता का अद्भुत संगम . बहुत खूब श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका मीना जी।सुंदर प्रतिक्रिया आपकी भा गयी।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
बहुत-बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत ही अच्छी कविता।
ReplyDeleteजी आभार आपका विजय जी।
Deleteसस्नेह सुप्रभात।
ReplyDeleteमीरा सा समर्पण लिये आलोकिक रचना
मन मे माधुर्य और सुंदर अनुभूति देती अप्रतिम भावनाऐं।
बूँदे बरसी अमृत घुलकर संगीत शिला से फूट पड़े
ReplyDeleteकल-कल बहती रसधारा में रिसते घावों को भूल गयी...
इतनी अलंकारी और सुंदर पंक्तियों से आपने कविता को अत्यंत ही रोचक रूप दे डाला है। मेरी कामना है कि आपकी कलम और लेखनी नित नए आयाम स्थापित करे। बधाई आदरणीय श्वेता जी।
वाह!!श्वेता ,अनुपम कृति ।
ReplyDeleteवाह अप्रतिम प्रिय श्वेता ....👌👌👌👌👌💕💕💕
ReplyDeleteएक एक पंक्ति नेह रस से ओत प्रोत है
पावन सा नेह बरसता है
तन मन क्या अंतर तक भीगा
ऐसा माधुर्य सरसता है !
आभार सखी....
ReplyDeleteकभी आइए न रुड़की
सादर
मैं कविता में ऐसा डूबी
ReplyDeleteअपनी सुध-बुध ही भूल गयी
बहुत सुंदर शब्दों का चयन कर अप्रतिम प्रेम लिख दिया।
वाह!
माधुर्य से परिपूर्ण रचना में अलौकिक प्रेम झलक पड़ा है। रचना में भावों का प्रवाह फूट पड़ा है। सुंदर,सरस,सुगढ़ एवं मनमोहक रचना।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाऐं। लिखते रहिये।
बहुत खूवसुरत जी
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 14 जनवरी 2018 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteप्रेम से परिपूर्ण बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, स्वेता। बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteप्रेम का खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
सादर
बहुत ही सुन्दर .......
ReplyDeleteकल कल बहती रस धारा में रिसते घावों को भूल गयी
प्रेम रस से ओतप्रोत मनभावन रचना
वाह!!!
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...मन के सारे भाव लिख दिये
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/01/52.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह ! क्या बात है ! लाजवाब !! शब्दों का खूबसूरत श्रंगार ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
ReplyDeleteजिसने प्रेम को ईश मान लिया उसने जग पा लिया ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एहसास लिए प्रस्तुति ...
बहुत खूब .....
ReplyDeleteआकर्षित करते शब्द .....!!