जाने क्यूँ
अवश हुआ
जाता है मन
खींचा जा रहा
तुम्हारी ओर
बिन डोर
तितलियों के
रंगीन पंखों
पर उड़ता
विस्तृत आसमां
पर तुम्हें छूकर
आयी हवाओं के
संग बहा जा रहा है
कस्तूरी सा व्याकुल
मन अपने में गुम
मदमस्त
पीकर मधु रस
तुम्हारे एहसास का,
बूँद बूँद पिघल रहा है
अन्तर्मन के शून्य में,
अमृत सरित तुम
बरसों से सूखे पडे़
वीरानियों में सोये
शिलाखंड को
तृप्त कर रहे हो
और शिलाखंड
अमृत सरित के
कोमल स्पर्श से
घुल रहा है
अवश होकर
धारा के प्रवाह में
विलीन हर क्षण
हर उस पल को
समाहित करता
जिसमें तुम्हारा
संदली एहसास
समाया हुआ है।
#श्वेता🍁
अवश हुआ
जाता है मन
खींचा जा रहा
तुम्हारी ओर
बिन डोर
तितलियों के
रंगीन पंखों
पर उड़ता
विस्तृत आसमां
पर तुम्हें छूकर
आयी हवाओं के
संग बहा जा रहा है
कस्तूरी सा व्याकुल
मन अपने में गुम
मदमस्त
पीकर मधु रस
तुम्हारे एहसास का,
बूँद बूँद पिघल रहा है
अन्तर्मन के शून्य में,
अमृत सरित तुम
बरसों से सूखे पडे़
वीरानियों में सोये
शिलाखंड को
तृप्त कर रहे हो
और शिलाखंड
अमृत सरित के
कोमल स्पर्श से
घुल रहा है
अवश होकर
धारा के प्रवाह में
विलीन हर क्षण
हर उस पल को
समाहित करता
जिसमें तुम्हारा
संदली एहसास
समाया हुआ है।
#श्वेता🍁
सुंदर रचना।।।।श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत आभार P.K ji
Deleteप्रेम की लहरों पे सवार मन और कर भी क्या सकता है ...
ReplyDeleteजी...बहुत आभार शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया के लिए।
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ReplyDeleteसुन्दर रचना है ...
बहुत आभार शुक्रिया आपका जी
Deleteबेहतरीन कविता। अंतर्मन की, प्रेम में विह्ल मनोदशा का अद्वितीय चित्रण। बहुत ही खूब।
ReplyDeleteजी बहुत आभार शुक्रिया तहे दिल से आपका मौलिक जी
Deleteसुंदर रचना श्वेता जी.
ReplyDeleteSudhaa1075.blogspot.com
बहुत शुक्रिया आभार आपका तहेदिल से सुधा जी।
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