रोशनी की तलाश
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मन का घना वन,
जिसके कई अंधेरे कोने से
मैं भी अपरिचित हूँ,
बहुत डर लगता है
तन्हाईयों के गहरे दलदल से,
जो खींच ले जाना चाहते है
अदृश्य संसार में,
समझ नहीं पाती कैसे मुक्त होऊँ
अचानक आ लिपटने वाली
यादों की कटीली बेलों से,
बर्बर, निर्दयी निराश जानवरों से
बचना चाहती हूँ मैं,
जो मन के सुंदर पक्षियों को
निगल लेता है बेदर्दी से,
थक गयी हूँ भटकते हुये
इस अंधेरे जंगल से,
भागी फिर हूँ तलाश में
रोशनी के जो राह दिखायेगा
फिर पा सकूँगी मेरे सुकून
से भरा विस्तृत आसमां,
अपने मनमुताबिक उड़ सकूँगी,
सपनीले चाँद सितारों से
धागा लेकर,
बुनूँगी रेशमी ख्वाब और
महकते फूलों के बाग में
ख्वाहिशों के हिंडोले में बैठ
पा सकूँगी वो गुलाब,
जो मेरे जीवन के दमघोंटू वन को,
बेचैनियों छटपटाहटों को,
खुशबूओं से भर दे।
#श्वेता🍁
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मन का घना वन,
जिसके कई अंधेरे कोने से
मैं भी अपरिचित हूँ,
बहुत डर लगता है
तन्हाईयों के गहरे दलदल से,
जो खींच ले जाना चाहते है
अदृश्य संसार में,
समझ नहीं पाती कैसे मुक्त होऊँ
अचानक आ लिपटने वाली
यादों की कटीली बेलों से,
बर्बर, निर्दयी निराश जानवरों से
बचना चाहती हूँ मैं,
जो मन के सुंदर पक्षियों को
निगल लेता है बेदर्दी से,
थक गयी हूँ भटकते हुये
इस अंधेरे जंगल से,
भागी फिर हूँ तलाश में
रोशनी के जो राह दिखायेगा
फिर पा सकूँगी मेरे सुकून
से भरा विस्तृत आसमां,
अपने मनमुताबिक उड़ सकूँगी,
सपनीले चाँद सितारों से
धागा लेकर,
बुनूँगी रेशमी ख्वाब और
महकते फूलों के बाग में
ख्वाहिशों के हिंडोले में बैठ
पा सकूँगी वो गुलाब,
जो मेरे जीवन के दमघोंटू वन को,
बेचैनियों छटपटाहटों को,
खुशबूओं से भर दे।
#श्वेता🍁
beautiful composition...Sweta ji
ReplyDeleteआपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए बहुत आभार आपका
DeleteP.k ji
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 10 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार यशोदा दी आपका बहुत सारा आपके मान के लिए।
DeleteNice poem
ReplyDeleteआभार अर्चना जी बहुत शुक्रिया आपका
DeleteNice poem
ReplyDeleteसुन्दर व तार्किक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपका आभार ध्रुव जी बहुत सारा
Deleteइस तन्हाई और अँधेरे से कहुग ही बहार आना होता है ... राह ढूंढनी होती है ... मन के गहरे पार्ट में सपनों के बीज बपने होते हैं और उन्हें पल्लवित करना होता है ...
ReplyDeleteहाँ जी उसी निराशा कुंठा और हताशा से बाहर निकलने का स्वप्न बुनती है मेरी रचना।
Deleteबहुत आभार दिगम्बर जी आपका सुंदर टिप्पणी} के लिए।
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है ... बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteजी बहुत शुक्रिया आभार संजय जी आपके उत्साहवर्धक शब्द़ो के लिए।आपका आना सुखद लगा।
Deleteआज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteआभार सुशील जी।
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